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8 उपाध्याय
(६) आराम होने पर गूमड़े में मीठी-मीठी खुजली चलती है। जो मनुष्य उसे खुजला लेता है, उसके विकार की वृद्धि होती और वह फिर दुःखी होता है। जो अपने मन को वश में रख कर खुजलाता नहीं है, उसका दर्द शीघ्र ही मिट जाता है और वह सुखी हो जाता है। इसी प्रकार इस मनुष्यजन्म में, कर्म रूप रोग के आराम होने का समय आने पर विषयों की अभिलाषा अधिक होती है। ऐसे अवसर पर जो अपने अन्तःकरण को काबू में कर लेते हैं, वे जन्म-जरा-मरण के दुःखों से छुटकारा पा लेते हैं और मोक्ष के अनन्त सुख के भोक्ता बन जाते हैं ।
इस प्रकार के विचार करके विषयाभिलाषा को नष्ट करके ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
ब्रह्मचर्यस्य ये गुणाः । शृणु त्वं वसुधाधिपः । आजन्म मरणावस्तु. ब्रह्मचारी भवेदिह ।। न तस्य किञ्चिदप्राप्य-मिति विद्धि नराधिय ! बहवः कोटयस्त्वषीणां ब्रह्मलोके वसन्त्युत ॥ सत्वे रसानां सततं, दान्तानामूर्ध्वरेतसाम् ।
ब्रह्मचर्य वहेद् राजन् ! सर्व पापनुयसितम् (?)॥ भीष्मपितामह युधिष्ठिर से कहतेः-हे राजन् ! ब्रह्मचर्य के गुण सुनो। जिसने जीवन-पर्यन्त ब्रह्मचर्य का पालन किया है, उसे किसी भी गुण की कमी नहीं रहती। स्वयं परमात्मा और तथा सब ऋषि-मुनि उसके गुण गाते हैं। वह इस जन्म में अनेक सुख भोग कर अन्त में परम पदवी प्राप्त करता है। ब्रह्मचारी निरन्तर सत्यवादी, जितेन्द्रिय, शान्तात्मा, नीरोग, सद्भाव सहित, पराक्रमी, शास्त्रज्ञ, प्रभु का भक्त और उत्तम आराधक होकर सभी पापों का क्षय करके सिद्धगति प्राप्त करता है ।
१७ प्रकार का संयम
(१) पृथ्वीकाय संयम :-जवार के दाने के बराबर पृथ्वीकाय के खण्ड में असंख्य जीव हैं । यदि उनमें से एक-एक जीव निकल कर कबूतर