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ॐ उपाध्याय ___ [२२७ सातवें में चार लोकपालों का, आठवें में १० प्रकार के देवों का, नौवें में पाँच इन्द्रियों के विषयों का, दसवें में इन्द्रों की परिषद् का वर्णन है।
(४) चौथा इतकः-- चौथे शतक में ईशानेन्द्र के चार लोकपालों का, उनकी राजधानियों का तथा लेश्या आदि का वर्णन है।
(५) पाँचवाँ शतक:-सूर्योदय दिन-रात तथा ऋतु का परिमाण, आयुष्य का कथन, हास्य और निद्रा से होने वाला कर्म बंधन, हरिणगमेषी देव और गर्भापहरण, ऐवंताकुमार, पूर्वधर साधुओं की शक्ति, १५ कुलकरों के नाम, नारदपुत्र निग्रन्थ की चर्चा आदि अनेक विषयों का वर्णन है।
(६) छठे शतक–में महावेदना और महानिर्जरा की चौभंगी, तमस्काय, कृष्णराजि, लौकान्तिक देव, धान्य की योनि का कालप्रमाण आदि अनेक विषय हैं।
(७) सातवें शतक-में आहारक-अनाहारक, लोकसंस्थान, श्रावक की सामायिक, सुप्रत्याख्यान, जीव की शाश्वतता-अशाश्वतता आदि विविध विषयों का वर्णन है।
(८) आठवें शतक में प्रयोगसा, मिश्रसा और विस्रसा पुद्गलों का, साँप, बिच्छू और मनुष्य के विष का तथा पाँच क्रियाओं आदि का वर्णन है।
(६) नौवें शतक में जम्बूद्वीप का वर्णन है। अढाई द्वीप में ज्योतिषी देवों की संख्या, सोचा-असोच्चा केवली, गांगेय अनगार के भंग, ऋषभदत्त ब्राह्मण और देवानन्दा ब्राक्षणी एवं जमाली का निरूपण है । तथा स्थावर जीवों के श्वासोच्छ्यास आदि अनेक विषयों का वर्णन है।
(१०) दशवें शतक–में पाँच शरीरों का संवृत्त साधु का, योनि का, वेदना का, आलोचना से आराधना का, आत्मऋद्धि का, अल्पऋद्धि और महाऋद्धि वाले देवों का, त्रागस्त्रिंशक देवों का तथा सुधर्मा सभा आदि का वर्णन है।
__(११) ग्यारहवें शतक-में उत्पल, सालु, पलास आदि का तथा शिवराज ऋषि, सुदर्शन सेठ, महावल कुमार और प्रालंभिया नगरी के श्रावकों वगैरह का वर्णन है।