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*जैन-तत्त्व प्रकाश *
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डाला। उसके बाद यक्ष ने अर्जुन माली के शरीर में रह कर प्रतिदिन छह पुरुषों और सातवीं स्त्री को मारना आरंभ कर दिया । इस प्रकार पाँच मास और तेरह दिन में उसने ११४१ मनुष्यों के प्राण ले लिये । राजगृही के निवासियों में बड़ी घबराहट फैल गई और उस तरफ के रास्ते बंद हो गये । इसी समय सौभाग्य से भगवान् महावीर स्वामी अपने शिष्यों के साथ वहाँ पधारे और उसी बगीचे में विराजमान हुए । प्रभु के दर्शन के लिए दृढ़धर्मा सुदर्शन से fast बनकर निकले । सुदर्शन सेठ नगरी के बाहर निकले ही थे कि अर्जुन अपने हाथ का मुद्गर उछालता - उछालता सामने आया । पर सुदर्शन सेठ का धर्म- तेज देखते ही यक्ष अर्जुन माली के शरीर में से निकल कर भाग गया । अर्जुन माली बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा। सुदर्शन सेठ अर्जुन माली को उठा कर भगवान् के पास लाये । प्रभु का उपदेश सुन कर अर्जुन माली ने दीक्षा धारण की और छठ- छठ के उपवास शुरु किये । पारणे के दिन जब अर्जुन मुनि राजगृही नगरी में भिक्षा के लिए जाते तो पूर्वअवस्था में जिन-जिन के कुटुम्बीजनों को मारा था, वे सब उन्हें देखकर घर में घुसेड़ कर खूब मारते-पीटते थे । फिर भी अर्जुन मुनि समभाव धारण करके सभी वेदनाएँ सहन करते और कहते - 'मैंने तुम्हारे कुटुम्बी को प्राणहीन कर दिया था, फिर भी तुम मुझे मार-पीट कर ही छोड़ देते हो, मेरे प्राण नहीं लेते, यह तुम्हारा मेरे ऊपर महान् उपकार है।' इस प्रकार की महाक्षमा धारण करके मुनि ने घोर तपश्चर्या की और छह मास में ही कर्मों की सेना का दलन करके निर्वाण प्राप्त किया ।
(१०) लोक भावना
लोक और लोक के संस्थान (आकार) का चिन्तन करना लोकभावना अथवा लोकसंस्थानभावना कहलाती है। इसका चिन्तन इस प्रकार किया जाता है: - श्राकाश के जिस भाग में छहों द्रव्य रहते हैं वह भाग लोक कहलाता है । उसका आकार एक दूसरे के ऊपर रक्खे हुए तीन दीपकों के