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* उपाध्याय *
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(६) श्रीचन्द्रप्रज्ञप्ति – यह ज्ञाता सूत्र का उपांग है । इसमें चन्द्रमा के विमानों, मांडलों, गति, नक्षत्र, योग, ग्रहण, राहु, चन्द्र के पांच संवत्सर आदि विषयों का वर्णन है । इसके मूल श्लोक २२०० हैं । पहले इसके ५५०००० पद थे ।
(७) श्रीसूर्यप्रज्ञप्ति – यह भी ज्ञातासूत्र का ही दूसरा उपांग है । इसमें सूर्य के विमान, १८४ मांडलों का दक्षिणायन, उत्तरायण, पर्वराहु, गणितांक (१६४ संख्या के नामों की गिनती), दिनमान, सूर्य संवत्सर आदि का वर्णन है । इसके मूल श्लोक २२०० हैं । पहले ३५०००० पद थे।
(८) निरयावलिका - यह श्री उपासकदशांग का उपांग है । इसके दस अध्ययन हैं । इनमें श्रेणिक राजा के काल, दुकाल आदि दस कुमारों का वर्णन है। श्रेणिक का पुत्र कोशिक अपने पिता को मार कर राजा बना । उसके बाद अपने छोटे भाई विहल्लकुमार के पास से हार और सिंचानक हाथी बलात्कार पूर्वक छीन लेने को तैयार हुआ । बिहल्लकुमार अपने नाना राजा चेटक की शरण में गया । दोनों भाइयों के बीच घोर संग्राम हुआ | चेटक राजा ने अपने धर्ममित्र मल्ली और ६ लच्छी इस प्रकार १८ राजाओं के ५७ हजार हाथी, घोड़ा, रथ और ५७ करोड़ पैदल सैनिकों के साथ और कोशिक ने अपने १० भाइयों तथा ३३ हजार हाथी, घोड़ा, रथ और ३३ करोड़ पैदल सैनिकों के साथ श्रामने- सामने युद्ध किया । राजा चेटक ने कोशिक के दसों भाइयों को मार डाला। इसके बाद कोशिक ने चमरेन्द्र और शक्रेन्द्र की सहायता से रथ- मूसल और महाशिला कंटक संग्राम किया, जिसमें एक करोड़, अस्सी लाख मनुष्यों के प्राण गये । इन मृतक मनुष्यों में से एक देवगति में; एक मनुष्यगति में और शेष सत्र नरक या तिर्यञ्च गति में उत्पन्न हुए । हार देवता ले गये और सिंचानक हाथी आग की खाई में पड़कर मर गया। चेटक राजा को भवनपति देव ले गये
दिये जाने की बात विदित हो गई, फिर भी उसने समभाव नहीं त्यागा । समाधिभाव में शरीर त्याग करके वह पहले देवलोक के सूर्याभ नामक विमान में देवरूप से उत्पन्न हुआ । वहाँ चल कर वह महाविदेह क्षेत्र में मनुष्य होगा और संयम धारण करके मोक्ष प्राप्त करेगा ।