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ॐ जैन-तत्त्व प्रकाश
इस प्रकार ११ अंग, १२ उपांग, ४ छेद ४ मूल सूत्र मिलकर ३१ और एक आवश्यक सूत्र (जिसमें मूल श्लोक १०० हैं ) मिलकर कुल ३२ सूत्र प्रमाणभूत गिने जाते हैं ।
श्रीनन्दी सूत्र में, ७२ सूत्रों के नामों का उल्लेख है । उनमें ४१ सूत्र कालिक हैं । उनके नाम यह हैं: - (१) श्रीआचारांग (२) श्रीसूयगडांग (३) श्रीठाणांग (४) श्रीसमवायांग ( ५ ) श्रीभगवती (६) श्रीज्ञाता (७) श्रीउपासकदशांग (८) श्रीमन्तगडदशांग (६) श्री अनुत्तरोववाई (१०) श्रीप्रश्नव्याकरण (११) श्रीचिपाक (१२) श्रीउत्तराध्ययन (१३) श्रीदशाकल्प (१४) श्रीव्यव - हार (१५) श्रीनिशीथ (१६) श्रीमहानिशीथ ( १७ ) श्रीऋषिभाषित (१८) श्री जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति (१९) श्रीद्वीपसागर प्रज्ञप्ति ( २० ) श्रीचन्द्र प्रज्ञप्ति ( २१) श्री खुडिड्याविमानविभक्ति (२२) महल्लियाविमानविभक्ति ( २३ ) श्री अंगचूलिया (२४) श्रीबंगचूलिया (२५) श्रीविवाहचूलिया (२६) श्रीश्ररुणोववाय (२७) श्रीवरुणोववाय (२८) श्रीगरुडोववाय (२६) श्रीधरणोववाय (३०) वेसमणोववाय (३१) वेलंधरोववाय (३२) देविंदोववाय (३३) उट्ठानसुए (३४) समुट्ठा सुए (३५) नागपरियावलियाओ (३६) निरियावलियाओ (३७) कप्पियाओ (३८) कप्पचडँसियाओ (३६) पुष्फियाओ (४०) पुष्पचूलिया ( ४१ ) वहिदा ओ यह ४१ सूत्र कालिक होने के कारण दिन और रात के पहले और चौथे पहर में पढ़े जाते हैं; शेष समय में नहीं पढ़े जाते ।
३० सूत्र उत्कालिक हैं । उनके नाम यह हैं: - (१) दशवैकालिक (२) कपियाकपियं (३) चुल्लकप्पसुर्य (४) महाकष्पसुयं (५) उववाई ( ६ ) रायसेणी (७) जीवाभिगम (८) पनवणा ( 8 ) महापन्नवणा (१०) पमायापमाय (११) नंदी (१२) अनुयोगद्वार (१३) देवेन्द्रस्तव (१४) तन्दुलवेयालिय (१५) चंदाविज्झाय (१६) सूरपणति ( १७ ) पोर सीमंडल (१८) मंडल प्रवेश (१६) विद्याचरणविणिच्छओ (२०) गणिविद्या (२१) ध्यानविभक्ति (२२) मरणविभक्ति (२३) आत्मविशोधि (२४) वीतरागश्रुत (२५) संलेखनाश्रुत (२६) विहारकल्प (२७) चरणविधि (२८) उरपचक्खाण (२६) महापञ्चकखाण (३०) दृष्टिवाद | यह ३० सूत्र उत्कालिक होने के कारण बत्तीस प्रकार का अज्झाय टालकर किसी भी समय पढ़े जा सकते हैं ।