________________
जैन-तत्र प्रकाश
२६० ]
शरीर में नौ द्वार हैं, जिनसे अशुचि पदार्थ निकलते रहते हैं- दो कानों के छेद, दो नाक के छेद, दो आँखों के छिद्र, मल-मूत्र त्यागने के छिद्र और मुख द्वार | स्त्रियों के शरीर में इन नौ के अतिरिक्त गर्भाशय का छिंद्र और दो स्तनों के होते हैं । इनके अतिरिक्त ' बारीक-बारीक "छिंद्र अनेक होते हैं ।
***
म
शरीर में कलेजे का वजन २५ पल, आँख का दो पल, शुक्र का ३० टांक, रक्त का एक अंक) चर्बी का आधा अटक, माथे का एक पाथा, मूत्र का एक अटक, विष्ठा का एक पाथा; पित्त का एक कलब और कफ का एक कलब है । इस वजन से अधिक हो जाने पर रोग की उत्पत्ति होती है और घटने पर मृत्यु होती है ।
7:
शरीर में १६० नाड़ियाँ नाभि से ऊपर रस को धारण करने वाली हैं । और १६० - ही नाभि से नीचे हैं । १६० तिरछी हाथ आदि को लपेटे हुए हैं । १६० नाड़ियां नाभि के नीचे गुदा को घेरे हुए हैं । २ नाड़ियाँ' श्लेष्म अर्थात् कफ स्थान को, २५ पित्तस्थान को और १० शुक्र को धारणं" करने वाली हैं । इस प्रकार कुल ७०० नाड़ियाँ शरीर में हैं ।
शरीर में दो हाथ, दो पैर- इस प्रकार चार शाखाएँ हैं । प्रत्येक शाखा में ३०-३० हड्डियाँ होने से १२० हड्डियाँ हैं । इनके अतिरिक्त पांच दाहिनी कमर में, पांच बाई' कमर में, चार योनि में, चार गुदा में, एक त्रिकन में, बहत्तर दोनों पसवाड़ों में, तीस पीठ में, आठ हृदय में, दो आँखों में, नौ ग्रीवा में, चार गले में, दो दाढ़ी में ३२ (दांत) मुंह में, एक नाक में, एक तालु में इस प्रकारों सब मिलकर ३०० हड्डियाँ हैं ।
܀
इस शरीर में साढ़े तीन करोड़ रोम हैं । उनमें से दो करोड़ और इक्यावन लाख रोम गले के नीचे हैं और ६६ लाख गले के ऊपर हैं। तरह देखा जाय तो यह शरीर विविध प्रकार की अशुचि और पवित्रता से, अधि, व्याधि और उपाधि से परिपूर्ण है। जब तक पुण्य की पूरी उदय रहता है तब तक यह सारी अपवित्रता छिपी रहती हैं और ऊपर से चमड़ी का चादर ढँका रहता है F पर पाप का उदय आने पर अर्थात् पाप के फैस
171 शक ह