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* जैन-तत्त्व प्रकाश *
और विहल्ल कुमार ने दीक्षा अंगीकार करके आत्मकल्याण किया । इत्यादि वर्णन इस सूत्र में है।
(8) कप्पवडिसिया-यह श्री अन्तगड़सूत्र का उपांग है । इसमें दस अध्ययन हैं । इन अध्ययनों में राजा श्रेणिक के पौत्र कालिक आदि दस कुमारों के पुत्र पन, महापद्म आदि ने दीक्षा ली और काल करके देव-लोक में उत्पन्न हुए, इत्यादि वर्णन है ।
(१०) पुफिया-यह अनुत्तरोबवाई सूत्र का उपांग है। दस अध्ययन हैं । इनमें चन्द्र, सूर्य, शुक, मानभद्र आदि की पूर्वभव की करणी का तथा सोमल ब्राह्मण और श्रीपार्श्वनाथ स्वामी का संवाद एवं बहुपुत्रिया देवी का अधिकार है।
(११) पुष्फचूलिया-यह प्रश्नव्याकरण सूत्र का उपांग है । इसमें १२ अध्ययन हैं। उनमें श्री, ही, धृति, कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी, इला, सुरा, रसा और गंधा देवी का-जो पार्श्वनाथ भगवान की साध्वियां थीं और जो संयम की विराधना करके देवियां हुई-वर्णन है।
(१२) वहिनदशा-यह विपाक सूत्र का उपांग है। इसके दस अध्ययन हैं। इसमें बलभद्रजी के निषट कुमार आदि का वर्णन है । वे संयम धारण करके अनुत्तर विमान में देव हुए।
(निरयावलिया, कप्पवडिसिया, पुफिया और वह्निदशा-इन उपांगों का एक यूथ है। यह यूथ 'निरयावलिका' नाम से प्रसिद्ध है । इसके मूल श्लोक ११०६ हैं।
चार छेदसूत्र
(१) व्यवहारसूत्र-इसमें साधु के आचार-व्यवहार का वर्णन है । ६०० श्लोकपरिमित है।