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® उपाध्याय
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(२) बृहत्कल्पसूत्र-इसमें साधु के लिए वस्त्र, पात्र और मकान का परिमाण बतलाया है । मूल श्लोक ४३७ हैं ।
(३) निशीथसूत्र-इसमें साधु को प्रायश्चित्त देने की विधि है । मूल श्लोक ८१५ हैं।
(४) दशाश्रुतस्कन्ध--इसमें असमाधि, शबल दोष, सात निदान (नियाणा) आदि का अधिकार है । मूल श्लोक १८३० हैं।
यह चार सूत्र छेदसूत्र कहलाते हैं । कोई-कोई पंचकल्प और जीतकल्प नामक दो सूत्रों को इसमें मिलाकर छह छेदसूत्र कहते हैं। किन्तु पंचकल्प और जीतकल्प के नाम नंदीसूत्र में नहीं पाये जाते हैं।
चार मूलसूत्र
जैसे वृक्ष का मूल दृढ़ हो तो वह चिरकाल तक टिका रहता है और अच्छे फल देता है, उसी प्रकार नीचे बतलाये हुए चार सूत्रों के पठन-श्रवण से सम्यक्त्व-वृक्ष का मूल दृढ़ होता है। इसी अभिप्राय से इन्हें मूल सूत्र कहते हैं । वे इस प्रकार हैं:
(१) दशवकालिक-इस सूत्र के दस अध्ययन हैं । पहले अध्ययन में धर्म की महिमा और धर्माचरण करने वाले का कर्तव्य बतलाया गया है । दूसरे अध्ययन में ब्रह्मचर्य की महिमा और साधु का मन स्थिर करने का उपाय बतलाया है । तीसरे अध्ययन में ५२ अनाचरण, चौथे अध्ययन में छह कायों का, पांच महाव्रतों का, ज्ञान से दया और दया से क्रमशः मोक्ष की प्राप्ति किस प्रकार होती है, यह वर्णन है । पाँचवें अध्ययन में साधु के आहार ग्रहण करने के नियमों का वर्णन है। छठे अध्ययन में साधु को १८ स्थान अनाचरणीय बतलाये हैं। सातवें अध्ययन में भाषा समिति की विधि है । आठवें अध्ययन में आत्मा को तारने का विविध प्रकार का उपदेश है। नौवें अध्ययन में विनय और अविनय का फल, दृष्टान्त, तथा विनीत के