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® उपाध्याय 8
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जितनी स्याही, तीसरे पूर्व को लिखने में चार हाथी डूबने जितनी स्याही; इस प्रकार द्विगुणित करते-करते चौदहवें पूर्व को लिखने में ८१६२ हाथी डूब जाएँ, इतनी स्याही की आवश्यकता थी। इस हिसाब से चौदह पूर्व लिखने में इतनी स्याही अपेक्षित थी कि उसमें १६३८३ हाथी डूब जाएँ ।
बारहवें दृष्टिवाद अंग की पाँच वत्थुओं में से तीसरी वत्थु में पूर्वोक्त १४ अंगों का समावेश होता था। चौथी वत्थु में छह विषयों का समावेश थापहले विषय के पाँच हजार पद थे। दूसरे, तीसरे, चौथे, पाँचवें और छठे विषय के पृथक्-पृथक् बीस करोड़, अठानवे लाख, नौ हजार, दो सौ पद थे। दृष्टिवाद अंग की पाँचवों वत्थु चूलिका कहलाती है। इसमें दस करोड़, उनसठ लाख, सैतालीस हजार पद थे। इतने विशाल और महान् दृष्टिवाद अंग का विच्छेद होने के कारण जैनधर्म की और जैनसाहित्य की अतीव हानि हुई है । यह अंग धर्मज्ञान का अक्षय भंडार था । खेद है कि इस अंग का कोई भी भाग अत्र उपलब्ध नहीं है।
जिस समय यह बारह अंग पूर्ण रूप से विद्यमान थे, उस समय उपाध्यायजी इन सब में पारंगत होते थे । आजकल ग्यारह अंगों का जितनाजितना भाग अवशेष रहा है, उसके ज्ञाता और पाठक को उपाध्याय कहते हैं।
द्वादश उपांग
जैसे शरीर के उपांग हाथ-पैर आदि होते हैं, उसी प्रकार ग्यारह अङ्गों के बारह उपांग हैं। जिस अङ्ग में जिस विषय का वर्णन किया गया है, उस विषय का आवश्यकतानुसार विशेष कथन उसके उपांग में है । उपांग एक प्रकार से अङ्गों के स्पष्टीकरण रूप परिशिष्ट भाग हैं। बारह उपांगों का संक्षिप्त दिग्दर्शन इस भाँति है:
(१) उववाई-यह आचारांगसूत्र का उपांग है। इसमें चम्पानगरी, कोणिक राजा, श्री महावीर प्रभु, साधुजी के गुण, तप के १२ प्रकार,