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त्याग कर पौषधशाला में रह कर श्रावक की ११ पडिमाओं का श्राराधन किया । उपसर्ग याने पर भी वे धर्म से विचलित नहीं हुए। सभी श्रावक एक-एक मास का संथारा करके पहले देवलोक में उत्पन्न हुए | सबने चारचार पल्योपम की आयु पाई। सब पहले देवलोक से चरकर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होंगे और मुक्ति प्राप्त करेंगे ।
इस सूत्र में श्रावकों की दिनचर्या का भी सुन्दर रूप से दिग्दर्शन कराया गया है | आदर्श गृहस्थ और उत्तम श्रावक होने की इच्छा रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इस सूत्र का अभ्यास अवश्यमेव करना चाहिए । इससे उनका जीवन धर्ममय बनेगा, धर्म में उत्साह और दृढ़ता प्राप्त होगी । इस सूत्र में श्रावक के १२ व्रतों का तथा ११ पडिमा का व्यौरेवार वर्णन है | श्रावक शब्द साधारणतया अविरतसम्यग्दृष्टि और देशविरत दोनों गुणस्थान वालों के लिए प्रयुक्त होता है, किन्तु 'श्रमणोपासक ' शब्द केवल देशविरत गृहस्थ के लिए ही प्रयुक्त हुआ है । पहले इस सूत्र के ११७०००० पद थे किन्तु आजकल ८१२ श्लोक ही बचे हैं ।
दस श्रावकों का परिचय
श्रावकों के नाम
नाम
नगर-नाम
* उपाध्याय
पत्नी - नाम गौ संख्या धनपरिमाण उपसर्ग विमान
वाणिज्य ग्राम शिवानन्दा |४०००० ४००००
६००००
चम्पा
१ श्रानन्द २ कामदेव ३ चुलणी पिया बाणारसी ४ सुरादेव ५ खुलशतक आलम्भिका बहुला
धन्ना
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६ कुण्डकोलिक कम्पिलपुर
पूषा
७ शकडाल पुत्र पोलासपुर
अग्निमित्रा
म महाशतक राजगृह ६ मन्दिनि पिता श्रावस्ती १० सालनी पिता
29
भद्रा
श्यामा
रेवती आदि
श्रश्विनी
फाल्गुनी
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95
१००.०
८००००
४००००
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१२ क. सोनैया अवधिज्ञानका अरुण
|प करोड़ पिशाच आदि अरुणनाभ
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२४
१८
| १५
३
२४
१२
१२
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37
31
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12
19
भद्रा माता का अरुणप्रभ
१६ रोग का श्ररुणकांत स्त्री का अरुणारिष्ट
(धर्मचर्चा का | अरुणज
स्त्रीघात का अरुणभूत
रेवतीपत्नी का श्ररुणावतंसक
अरणगर्व
अरुणक्रीड़
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