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________________ [ २३१ 1 त्याग कर पौषधशाला में रह कर श्रावक की ११ पडिमाओं का श्राराधन किया । उपसर्ग याने पर भी वे धर्म से विचलित नहीं हुए। सभी श्रावक एक-एक मास का संथारा करके पहले देवलोक में उत्पन्न हुए | सबने चारचार पल्योपम की आयु पाई। सब पहले देवलोक से चरकर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होंगे और मुक्ति प्राप्त करेंगे । इस सूत्र में श्रावकों की दिनचर्या का भी सुन्दर रूप से दिग्दर्शन कराया गया है | आदर्श गृहस्थ और उत्तम श्रावक होने की इच्छा रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इस सूत्र का अभ्यास अवश्यमेव करना चाहिए । इससे उनका जीवन धर्ममय बनेगा, धर्म में उत्साह और दृढ़ता प्राप्त होगी । इस सूत्र में श्रावक के १२ व्रतों का तथा ११ पडिमा का व्यौरेवार वर्णन है | श्रावक शब्द साधारणतया अविरतसम्यग्दृष्टि और देशविरत दोनों गुणस्थान वालों के लिए प्रयुक्त होता है, किन्तु 'श्रमणोपासक ' शब्द केवल देशविरत गृहस्थ के लिए ही प्रयुक्त हुआ है । पहले इस सूत्र के ११७०००० पद थे किन्तु आजकल ८१२ श्लोक ही बचे हैं । दस श्रावकों का परिचय श्रावकों के नाम नाम नगर-नाम * उपाध्याय पत्नी - नाम गौ संख्या धनपरिमाण उपसर्ग विमान वाणिज्य ग्राम शिवानन्दा |४०००० ४०००० ६०००० चम्पा १ श्रानन्द २ कामदेव ३ चुलणी पिया बाणारसी ४ सुरादेव ५ खुलशतक आलम्भिका बहुला धन्ना "" ६ कुण्डकोलिक कम्पिलपुर पूषा ७ शकडाल पुत्र पोलासपुर अग्निमित्रा म महाशतक राजगृह ६ मन्दिनि पिता श्रावस्ती १० सालनी पिता 29 भद्रा श्यामा रेवती आदि श्रश्विनी फाल्गुनी 33 " 95 १००.० ८०००० ४०००० 33 १२ क. सोनैया अवधिज्ञानका अरुण |प करोड़ पिशाच आदि अरुणनाभ 5 २४ १८ | १५ ३ २४ १२ १२ " " " 37 31 " 12 19 भद्रा माता का अरुणप्रभ १६ रोग का श्ररुणकांत स्त्री का अरुणारिष्ट (धर्मचर्चा का | अरुणज स्त्रीघात का अरुणभूत रेवतीपत्नी का श्ररुणावतंसक अरणगर्व अरुणक्रीड़ ०
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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