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________________ २३० ] ॐ जैन-तत्व प्रकाश, [३४] चौतीसवें शतक में एकेन्द्रिय का श्रेणीस्वरूप है। [३५] पैंतीसवें शतक में महाकृत युग्म का कथन है । [३६] छत्तीसवें शतक-में एकेन्द्रिय के कृतयुग्म का कथन है । [३७) सैंतीसवें शतक में त्रीन्द्रिय के कृतयुग्म का कथन है। [३८] अड़तीसवें शतक में चौइन्द्रिय के कृतयुग्म का वर्णन है । [३६] उनचालीसवें शतक में असंज्ञी पंचेन्द्रिय के युग्म का वर्णन है । [४०] चालीसवें शतक में संज्ञी पंचेन्द्रिय के युग्म का कथन है । [४१] इकतालीसवें शतक में राशिकृत युग्म, नारक आदि चौवीसों दण्डकों का निरूपण है। वर्तमान काल में भगवतीसूत्र सब से बड़ा है और चमत्कारपूर्ण अधिकारों से परिपूर्ण है । पहले इस सूत्र के २२८८००० पद थे। आजकल १५७५२ श्लोक-परिमित ही उपलब्ध होता है। (६) ज्ञाताधर्मकथांग-इसके दो श्रुतस्कंध हैं। पहले श्रुतस्कंध में १६ अध्ययन हैं:-(१) मेघकुमार (२) धन सार्थवाह (३) मयूर के अंडे (श्रद्धाअश्रद्धा), (४) दो कछुए (इन्द्रियगोपन), (५) थावच्चापुत्र (६) तूंबा, (७) रोहिणी, (८) मल्लिनाथ भगवान (8) जिनरक्ष-जिनपाल (१०) चन्द्रमा (११) वृक्ष (१२) सुबुद्धिप्रधान (१३) नंदन मणियार (१४) तेतली प्रधान (१५) नंदीफल [१६] द्रौपदी [१७] अकीर्ण देश का घोड़ा [१८] सुसीमा पुत्री और [१६] पुंडरीक कुंडरीक । इस शास्त्र में कथाओं के द्वारा दया, सत्य, शील आदि उत्तम भावों पर खूब प्रकाश डाला गया है। दूसरे श्रुतस्कंध में २०६ अध्ययन हैं । उनमें श्रीपार्श्वनाथजी की २०६ आर्याएँ संयम में शिथिल होकर देवियाँ हुई, इस विषय का संक्षेप में वर्णन है। पहले इस सूत्र में ५५५६००० पद थे और उनमें साढ़े तीन करोड़ धर्म कथाएँ थीं। इस समय सिर्फ ५५०० श्लोक ही उपलब्ध हैं। [७] उपासकदशांग-इस अंग में एक श्रुतस्कंध है और उसमें दस अध्ययन हैं । इन अध्ययनों में भगवान् महावीर के १० उत्तम श्रावकों का अधिकार है। इन श्रावकों ने २०२० वर्ष तक श्रावक-व्रतों का पालन किया। इन वीस वर्षों में से १४॥ वर्ष तक घर में रहे और शो वर्ष गृहकार्य
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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