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ॐ उपाध्याय
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(१८) अठारहवें शतक में चरमाचरम, कार्तिक सेठ का अधिकार, गौतम स्वामी की अन्यतीर्थिकों के साथ चर्चा, सोमिल ब्राह्मण के प्रश्नोत्तर आदि अनेक विषय वर्णित हैं।
(१६) उन्नीसवें शतक-में लेश्याधिकार, पृथ्वी आदिक के १२ द्वार, सूक्ष्म-बादर का अल्पबहुत्व द्वार आदि विषय हैं ।
(२०) बीसवें शतक--में त्रस-तियच का आहार, लोकालोक में आकाश, कर्म-अकर्मभूमि में मनुष्य, महाविदेह क्षेत्र में धर्म की विशेषता, २४ तीर्थंकरों का अन्तरकाल, भरतक्षेत्र में १००० वर्ष तक पूर्वज्ञान की विद्यमानता, २१ हजार वर्ष तक जैनधर्म का अस्तित्व, विद्याचारण और जंघाचारण मुनि की गति, सोपक्रम और निरुपक्रम आयु आदि विषयों का वर्णन है ।
(२१) इक्कीसवें शतक में धान्यों और तृणों का कथन है । (२२) वाईसवें शतक--में ताड़ आदि वृक्षों और वल्लियों का वर्णन है । (२३) तेईसवें शतक--में साधारण वनस्पति का वर्णन है । (२४) चौबीसवें शतक में दंडकों का वर्णन है।
[२५] पच्चीसवें शतक–में १४ प्रकार के जीव, जीव-अजीव द्रव्यों का उपभोग, ५ संस्थान, आकाशश्रेणी, द्वादशांग, ६ प्रकार के निर्ग्रन्थ आदि अनेक विषय हैं।
[२६] छव्वीसवें शतक–में कर्मबंध के १० द्वार आदि का वर्णन है ।
[२७] सत्ताईसवें शतक में पापकर्म आश्रित छब्बीसवें शतक के समान ही वर्णन है।
[२८] अट्ठाईसवें शतक ---में भी पूर्वोक्त विषय का ही वर्णन है । [२६] उनतीसवें शतक–में पापकर्म के वेदन का अधिकार है।
[३०] तीसवें शतक में क्रियावादी आदि चार वादियों का समवसरण बतलाया गया है।
[३१] इकतीसवें शतक–में खुडागकृत युग्म-वर्णन है । [३२] बत्तीसवें शतक-में खुडागकृत युग्म नैरयिक की उत्पत्ति । [३३] तेतीसवें शतक में एकेन्द्रिय का कथन है।