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[३] स्थानांग (ठाणांग) सूत्र -- इस सूत्र में एक ही श्रुतस्कंध है और दस ठाणे (स्थानक अध्ययन) हैं। पहले में एक-एक संख्या वाले बोल हैं । दूसरे ठाणों में दो-दो संख्या वाले, तीसरे ठाणे में तीन-तीन संख्या वाले, इसी प्रकार क्रम से बढ़ते-बढ़ते दसवें ठाणे में दस-दस संख्या वाले बोल हैं । इसमें अनेक द्विभंगियाँ, त्रिभंगियाँ, चौभंगियाँ और सप्तभंगियाँ बतलाई गई हैं । सूक्ष्म और बादर अनेक विषयों का वर्णन है । साधु श्रावक के आचारगोचर का कथन है । यह शास्त्र विद्वानों के लिए बड़ा ही चमत्कारजनक है । रसोत्पादक वर्णन से परिपूर्ण है । इसके पहले ४२००० पद थे, अब ३७७० मूलश्लोक परिमित है ।
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* उपाध्याय *
[४] समवायांगसूत्र - इस सूत्र का भी एक ही श्रुतस्कंध है । इसमें अलग-अलग अध्ययन नहीं हैं। इसमें एक से लेकर सौ, हजार, लाख और करोड़ों की संख्या वाले बोलों का निर्देश है। द्वादशांगी की संक्षिप्त हुँडी भी इसमें उल्लिखित है । ज्योतिषचक्र, दण्डक, शरीर, अवधिज्ञान, वेदना, आहार, आयुबंध, संहनन, संस्थान, तीनों कालों के कुलकर, वत्र्त्तमान चौवीसी, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव आदि के नाम, इनके माता-पिता के पूर्वभव के नाम, तीर्थङ्करों के पूर्वभवों के नाम तथा ऐरावत क्षेत्र की चौवीसी आदि के नाम भी बतलाए गए हैं। यह शास्त्र जैन सिद्धान्तों का और जैन इतिहास का महत्वपूर्ण आधार है और गहन ज्ञान का खजाना है । इस शास्त्र के पहले १६४००० पद थे किन्तु आजकल १६६७ श्लोक ही उपलब्ध होते हैं ।
[५] व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती) सूत्र - इस पंचम अंग में एक श्रुतस्कंध है, ४१ शतक हैं और १००० उद्दे शक हैं । इसमें ३६००० प्रश्नोत्तर तो सिर्फ गौतम स्वामी और भगवान महावीर के हैं। इनके अतिरिक्त और भी अनेक प्रश्नोत्तर हैं । इसका शतकक्रम से संक्षेप में इस प्रकार परिचय है :
(१) पहला शतक - प्रथम शतक के पहले उद्दे शक में णमोकार मंत्र, ब्राह्मी लिपि, नमोत्थुणं, गौतम स्वामी के गुण, नौ प्रश्नोत्तर, आहार के ६३ भंग, भवनपति आदि, आत्मारंभी यादि तथा संवृत-संवृत आदि का वर्णन