SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२४ * जैन-तत्त्व प्रकाश * [१४] ग्रंथाख्य-अध्ययन-इसमें एकलविहारी साधु के दोष बतलाकर उसे हितशिक्षा दी गई है। [१५] आदानीयाख्य-अध्ययन में श्रद्धा, दया, वीरता, दृढ़ता आदि मोक्ष के साधनों का वर्णन है। [१६] गाथा-अध्ययन--इसमें श्रमण, माहन आदि का सच्चा स्वरूप बतलाया गया है। श्रीसूत्रकृतांगसूत्र के द्वितीय श्रुतस्कंध में सात अध्ययन हैं। उनका संक्षिप्त दिग्दर्शन इस प्रकार है: [१] पुडरीकाध्ययन-इसमें पुण्डरीक कमल का दृष्टान्त देकर चारों वादियों का स्वरूप समझाया गया है और पाँचवें मध्यस्थ ने उद्धार किया, यह वर्णन है। [२] क्रियास्थान-अध्ययन-इसमें १३ क्रियाओं का वर्णन है । [३] आहारप्रज्ञा-अध्ययन-इसमें जीवों के आहार ग्रहण करने की रीति का और उनकी उत्पत्ति का वर्णन है । [४] प्रत्याख्यान-अध्ययन में दुष्प्रत्याख्यान और सुप्रत्याख्यान का स्वरूप है और यह बतलाया गया है कि अविरति से दुःख होता है। [५] अनाचारश्रुत अध्ययन में अनाचार के दोषों का वर्णन तथा शून्यवादी के मत का खण्डन है। [६] आर्द्रकुमार-अध्ययन-मुनि आर्द्रकुमार ने अन्य मतावलम्बियों के साथ जो धर्मचर्चा की थी, उसका विवरण है। [७] उदक पेढालपुत्र-नामक अध्ययन में गौतम स्वामी के साथ उदक पेढालपुत्र ने जो चर्चा की थी, उसका वर्णन है। सूत्रकृतांगसूत्र के पहले ३६००० पद थे, अब २१०० श्लोक हैं।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy