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________________ ॐ उपाध्याय 8 [२२३ [२] वैतालीय-अध्ययन-इसमें ऋषभदेवजी के १८ पुत्रों को दिये हुए उपदेश का वर्णन है । विषय-त्याग की युक्ति का और धर्म के माहात्म्य का वर्णन है । [३] उपसर्ग-परिज्ञा- अध्ययन-कृष्णाजी और शिशुपाल के दृष्टान्त से वीरता और कायरता का कथन किया है और स्वजन संबंधी परिषह का [४] स्त्रीपरिज्ञा-अध्ययन-इसमें स्त्रीचरित का और स्त्री के संसर्ग से होने वाले दुःखों का वर्णन है। [५] नरक विभक्ति-इसमें नरक में होने वाले घोर दुःखों का वर्णन किया गया है। [६] वीरस्तव-अध्ययन-इसमें अनेक उपमाओं के साथ भगवान् महावीर की स्तुति की गई है। [७] कुशील-परिभाषा-अध्ययन-इसमें परमत के कुशील का और स्वमत के सुशील का वर्णन है । हिंसा का निषेध किया गया है। [८] वीर्याध्ययन में बालवीर्य और पण्डितवीर्य का कथन है । [१] धर्माध्ययन—इसमें दयाधर्म का और साधु के आचार का वर्णन है। [१०] समाधि-अध्ययन–समाधिभाव धर्म का आधार है। उसी समाधि का इसमें वर्णन है। [११] मोक्षमार्ग-अध्ययन—इसमें साधु के आचार के मिश्र प्रश्नोत्तर हैं। [१२] समवसरण अध्ययन में क्रियावादी आदि चारों वादियों के मतों का खण्डन किया गया है। [१३] यथातथ्य अध्ययन में स्वच्छन्दाचारी और अविनीत के लक्षण तथा सदाचारी धर्मोपदेशक के लक्षण बतलाए हैं।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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