SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२२ ] जैन-तत्त्व प्रकाश (६) नौवें उपधान श्रुत के चार उद्देशक हैं, जिनमें महावीर स्वामी के वस्त्र का, स्थानों का, परिषदों का और उनके आचार एवं तप का वर्णन है । श्राचारांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में सोलह अध्ययन हैं । इनमें निम्नलिखित वर्णन है -- (१) पिण्डेषणाध्ययन में आहार ग्रहण करने की विधि का । (२) शय्याख्याध्ययन में स्थानक ग्रहण करने की विधि का । (३) र्याध्ययन में ईर्यासमिति का । (४) भाषाजात अध्ययन में भाषासमिति का (५) वस्त्रैषणाध्ययन में वस्त्र ग्रहण करने की विधि का (६) पात्रैषणा - ध्ययन में पात्र ग्रहण करने की विधि का (७) अवग्रहप्रतिमाध्ययन में आज्ञा ग्रहण करने की विधि का (८) चेष्टिका अध्ययन में खड़े रहने को विधि का (E) निषिधिकाध्ययन में बैठने की विधि का (१०) उच्चारaar - अध्ययन में लघुनीति-बड़ी नीति परठने की विधि का (११) शब्द - अध्ययन में शब्द श्रवण करने की विधि का (१२) रूपाध्ययन में रूप को देखने की विधि का (१३) प्रक्रियाध्ययन में गृहस्थ से काम कराने की विधि का (१४) अन्योन्यक्रियाध्ययन में परस्पर क्रिया करने की विधि का, (१५) भावनाध्ययन में महावीर स्वामी के चरित का तथा पाँच महाव्रतों की पच्चीस भावनाओं का और (१६) विमुक्त अध्ययन में साधु की उपमात्र का वर्णन है । मूलतः आचारांग सूत्र के १८००० पद थे किन्तु अब २५०० श्लोक ही शेष रहे हैं। बाकी का भाग विच्छिन्न हो गया है । [२] सूत्रकृतांगसूत्र - इस अंग के भी द श्रुतस्कन्धो हैं पहले तस्कन्ध में १६ अध्ययन हैं । वे अध्ययन और उनमें प्रतिपादन किये गये विषय इस प्रकार हैं: --- [१] स्वसमय-परसमय-अध्ययन – इसमें भूतवादी, सर्वगतवादी, तज्जीतच्छरीरवादी, क्रियावादी, आत्मवादी, अफलवादी, नियतिवादी, अज्ञानवादी, क्रियावादी, ईश्वरवादी, देववादी, अण्डे से जगत् की उत्पत्ति मानने वाले आदि मतों का वर्णन है । साधु के आचार का भी किंचित् वर्णन है । * ३२ अक्षरों का एक श्लोक होता है और १५०८८६८४० श्लोकों का एक पद गना जाता है, ऐसा कथन दिगम्बर श्राम्नाय के भगवती - श्राराधना शास्त्र में है ।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy