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________________ * उपाध्याय L २२१ किन्तु इन सब में मौलिक बारह अंग शास्त्र ही है, जिनकी रचना साक्षात् गणधरों द्वारा हुई है । इन बारह अंगों के नाम और उनका संक्षिप्त परिचय क्रम से दिया जाता है: 1 (१) आचारांग - इस सूत्र के दो श्रुतस्कंध हैं । प्रथम श्रुतस्कंध में नौ अध्ययन हैं । (१) प्रथम शस्त्रपरिज्ञा अध्ययन है । इस अध्ययन में सात उद्देशक हैं, जिनमें क्रम से दिशा का, पृथ्वीकाय का, जलकाय का, अग्निकाय का, वनस्पतिकाय का, त्रसकाय का, और वायुकाय का कथन है । (२) दूसरे लोकविजय अध्ययन के छह उद्देशक हैं । इनमें क्रम से विषयत्याग का, मदत्याग का, स्वजन संबंधी ममत्व के त्याग का, द्रव्य संबंधी ममत्व के त्याग का हितशिक्षण का कथन है । (३) तीसरे शीतोष्णीय अध्ययन के चार उद्देशक हैं । इनमें क्रम से सुप्त तथा जागृत का, तत्त्वज्ञ और तत्त्वज्ञ का, प्रमाद के त्याग का और जो एक को जानता है सो सब को जानता है, इस तथ्य का वर्णन है । ( ४ ) सम्यक्त्व अध्ययन के भी चार उद्देशक हैं । इनमें क्रम से धर्म का मूल दया, सज्ञान-अज्ञान, सुख प्राप्ति का उपाय और साधु के लक्षण निरूपित किये गये हैं । (५) पाँचवें लोकसार ( यावति) नामक अध्ययन के छह उद्देशक हैं, जिनमें क्रम से यह वर्णन है कि जो विषयासक्त है वह साधु नहीं हो सकता, साधु वही है जो सावधानुष्ठान का त्यागी हो, कनक और कामिनी का त्यागी हो, तथा अव्यक्त साधु केला न रहे, ज्ञानी और अज्ञानी में क्या भेद है, प्रमादी और अप्रमादी में क्या अन्तर है ? (६) छठे धूताख्यान नामक अध्ययन में पाँच उद्देशक हैं। इनमें क्रम से कामासक्त के दुःख का, रागी -विरागी के दुःख-सुख का, ज्ञानी साधु की दिशा का, सुस्थित तथा भ्रष्ट के लक्षण का और उत्तम साधु के लक्षणों का कथन है । (७) सातवाँ महाप्रज्ञा नामक अध्ययन विच्छिन्न हो 1 गया है । (८) आठवाँ विमोक्ष अध्ययन है । इसके आठ उद्देशकों में क्रम से मतान्तरों का, साधु का, अकल्पनीय के परित्याग का, शंका के निवारण का, वस्त्र के त्याग का, भक्तप्रत्याख्यान और इंगित मरण का, पादपोपगमन मरण का अर्थात इन तीनों पण्डित - मरणों की विधि का वर्णन है ।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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