________________
८६ ]
* सिद्ध भगवान्
इसके पास 'सीतामुख' चन सरीखा ही 'सीतोदामुख' वन है और इसके पास जम्बूद्वीप का पश्चिम का जयन्त द्वार है ।
जयन्त द्वार के अन्दर सीतोदन नदी से उत्तर दिशा में भी वैसा ही 'सीतोदामुख' वन हैं । इसके पास पूर्व में ( मेरु की तरफ ) पच्चीसवीं विजय 'वप्रा' है । इसमें विजया राजधानी है । इसके पास चन्द्रकूट वक्षकार पर्वत है । उसके पास छब्बीसवीं 'सुवप्रा' विजय है । 'वैजयन्ती' उसकी राजधानी है । उसके पास 'ऊर्मिमालिनी' नदी है । उसके पास मत्ताईसवीं ' महावप्रा' विजय है । उसकी राजधानी 'जयन्ती' है । उसके पास 'सूरकूट' वक्षकार पर्वत है। उसके पास अट्ठाईसवीं 'वप्रावती' विजय है । उसकी राजधानी 'पराजिता ' है । उसके पास 'फेनमालनी' नदी है और उसके पास उनतीसवीं 'वगु' विजय है । इसकी राजधानी ' चक्रपुरा ' है । उसके पास 'नागकूट' वक्षकार पर्वत है । इस पर्वत के पास तीसवीं 'सुवल्गु ' विजय है । इसकी राजधानी 'खड्गी ' है । उसके पास गम्भीरमालिनी' नदी है । इसके पास इकतीसवीं 'गंधिला ' विजय है । इसकी राजधानी 'अवध्या' है । इसके पास देवकूट वक्षकार पर्वत है । उसके पास बत्तीसवीं 'गंधिलावती' विजय है । इसकी राजधानी 'आउला' है । इसके पास मेरु का भद्रशाल वन और गन्धमादन गजदन्त पर्वत है ।
सभी विजय पूर्वोक्त कच्छ विजय के समान हैं, सब वक्षकार पर्वत चित्रकूट पर्वत के समान हैं और सभी नदियाँ गाथापति नदी के समान हैं । इस प्रकार महाविदेह क्षेत्र के पूर्व से पश्चिम तक १००००० योजन का वर्णन हुआ
+ मेरु पर्वत से पूर्व-पश्चिम के १००००० योजन का हिसाब :-- प्रत्येक विजय २२१२१ योजन की है तो सोलह विजय के प्रत्येक वक्षकार ५०० योजन वा है तो आठ वक्षकार के प्रत्येक तर नदी १२५ योजन की है तो छह नदियों के प्रत्येक सीतामुखवन २६२२ योजन का है तो दो वनों के प्रत्येक भद्रशाल वन २२००० योजन का है तो दो वनों के मध्य में मेरु पर्वत
योजन
योजन
३५४०६
४०००
योजन
७५०
योजन
५८४४
योजन
४४०००
योजन १००००
१०००००
कल योजन