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* आचार्य *
[ ၃၇ ဦး
में या प्रश्नोत्तर में जीत सकूँगा अथवा नहीं' इस तरह प्रतिवादी की और अपनी शक्ति का विचार करके वाद-विवाद करना शक्तिज्ञानगुण है । प्रतिवादी जिस मत का अनुयायी हो, उसी मत के शास्त्र से उसे समझाना सो पुरुषज्ञानगुण है । [३] 'इस जगह के लोग मर्यादाहीन और उद्धत तो नहीं हैं कि किसी प्रकार का अपमान करें, अभी तो मीठे-मीठे बोलते हैं, फिर कहीं बदल न जाएँ, प्रतिवादी से मिल न जाएँ, कपटी और मिथ्यात्वी का आडम्बर देख कर विचलित हो जाएँ ऐसे अस्थिर तो नहीं है, इत्यादि क्षेत्र का विचार करके वाद करना क्षेत्रज्ञान गुण कहलाता है। [४] विवाद के समय कदाचित् राजा आदि का आगमन हो तो विचार करना कि यह राजा न्यायी है या अन्यायी है. नम्र है या कठोर है. सरल है या कपटी है. यह
आगे किसी प्रकार का पक्षपात या अपमान तो नहीं करेगा? इस प्रकार विचार करके वाद-विवाद करना वस्तुज्ञानगुण है।
(E) साधुओं के उपयोग में आने वाली आवश्यक वस्तुओं का विचार करके पहले से ही संग्रह कर रखना संग्रहसम्पदा है। इसके भी चार प्रकार हैं:-(१) बालक, दुर्बल, गीतार्थ, तपस्वी, रोगी तथा नवदीक्षित साधनों के निर्वाह के योग्य क्षेत्र को ध्यान में रखना 'गणयोग' सम्पदा कहलाती है। (२) अपने साध या बाहर से आये हुए साध के उपयोग में आने योग्य आवश्यक मकान, पाट, पाटला, पराल आदि का संग्रह कर लेना संसक्त-सम्पदा है । (३) जिस-जिस काल में जो जो क्रिया करनी हो, उस-उस काल में उस क्रिया के योग्य सामग्री का संग्रह कर रखना क्रियाविधिसम्पदा है। (४) व्याख्याता, वादविजयी, भिक्षाकुशल वैयावच्ची आदि शिष्यों का संग्रह कर रखना शिष्योपसंग्रह सम्पदा है।
चार विनय
. (१) आचारविनय-साधु के द्वारा आचरणीय (आदरणीय ) गुणों का आचरण करना आचारविनय है। इसके चार भेद हैं:-(१) स्वयं संयम का