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(३) जिस कषाय के होने पर सर्वविरति संयम न हो सके उसे प्रत्याख्यानावरण कषाय कहते हैं। इसका क्रोध धूल में खींची हुई लकीर के समान होता है, जो हवा से मिट जाती है । मान बेंत के स्तम्भ के समान होता है जो थोड़े से कष्ट से ही नम जाता है । माया चलते हुए बैल के द्वारा की हुई पेशाब की लकीर के समान होती है, जो अत्यन्त स्पष्ट दिखाई देती है लोभ कीचड़ के रंग के समान है जो सूखने से झड़ जाता है । कषाय की स्थिति चार महीने की है । यह सकल संयम का घात करता है । इस कषाय में मरने वाला जीव मनुष्य गति पाता है ।
* जैन-तत्व प्रकाश
(४) जो सम्पूर्ण यथाख्यात चारित्र को रोके उसे संज्वलन कषाय कहते हैं । इसका क्रोध पानी में खींची हुई लकीर के समान है जो शीघ्र ही मिट जाती है | मान तृण के समान है जो अनायास ही मुड़ जाता है । माया बाँस के मुड़े छिलके के समान है जो सहज ही सीधा हो जाता है । लोभ पतंग के रंग के समान है जो धूप लगते ही उड़ जाता है। इस कषाय की स्थिति १५ दिन की है । यह कषाय केवलज्ञान नहीं होने देता । इस कषाय में आयु पूर्ण करने वाला देवगति का अधिकारी होता है । इस प्रकार कषाय के कुल सोलह भेद होते हैं ।
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कितनेक लोग जानते हैं कि कषाय करना अच्छा नहीं है, फिर भी कषाय करते हैं । (२) कितनेक लोग अज्ञान के कारण कषाय के फल को न जानते हुए कषाय करते हैं । (३) कितने कुछ जानबूझ कर और कुछ अनजान में कषाय करते हैं । (४) कितनेक कषाय का कारण तो समझते नहीं फिर भी दूसरों की देखादेखी कषाय करने लगते हैं । (५) कितनेक अपने लिए कषाय करते हैं । (६) कितनेक दूसरे के लिए कषाय करते हैं । (७) कितनेक अपने और दूसरे के लिए शामिल कषाय करते हैं । (८) कितनेक बिना ही कारण (स्वभाव पड़ जाने से ) कषाय करते हैं । (६) कितनेक उपयोगसहित
* संज्वलन के क्रोध की स्थिति २ महीने की, मान की स्थिति १ महिने की, माया की स्थिति १५ दिन की और लोभ की स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। इस प्रकार का कथन बहुअर्थी पचवणा सूत्र में है ।