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* आचार्य
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और भाव से कषाय जिनका थोड़ा और हल्का हो । (११) ओजस्वी-परीषह और उपसर्ग आने पर धैर्य धारण करने वाले । (१२) तेजस्वी-प्रतापवान् (१३) वचस्त्री-चतुरतापूर्वक बोलने वाले, प्रभावजनक वाणी बोलने वाले । (१४) यशस्वी (१५) जितक्रोध-क्षमा से क्रोध को जीतने वाले (१६) जितमान-विनय के द्वारा मान को पराजित करने वाले (१७) जितमाय-सरलता गुण के द्वारा माया को जीतने वाले (१८) जितलोभ-सन्तोषशीलता से लोभ को जीतने वाले (१६) जितेन्द्रिय-इन्द्रियों संबंधी भोगोपभोगों की लोलुपता से रहित; इन्द्रियों पर काबू रखने वाले (२०) जितनिन्दा-पाप की निंदा करते हुए भी पापी की निन्दा न करने वाले और निन्दकों की परवाह न करने वाले (२१) जितपरीपह-क्षुधा तृषा श्रादि २२ परीषहों को जीतने वाले । (२२) जीविताशा-मरणभयमुक्त-दीर्घायु की आशा और मृत्यु का भय न करने वाले (२३) व्रतप्रधान-महाव्रत आदि व्रतों में प्रधान (श्रेष्ठ) होने के कारण (२४) गुण-प्रधान अर्थात् क्षमा आदि गुणों को धारण करने वालों में श्रेष्ठ अथवा क्षमा आदि गुण ही जिसके लिए प्रधान हैं। (२५) करणप्रधान-यथोचित कालोकाल की जाने वाली क्रिया के ७० गुणों से युक्त (२६) चरणप्रधान-निरन्तर पालन किये जाने वाले चारित्र के ७० गुणों से युक्त अर्थात् चरणसत्तरी के धारक (२७) निग्रहप्रधान-अनाचीर्णों का निषेध करने में प्रधान अर्थात् अस्खलित आज्ञा के प्रवर्चक (२८) निश्चयप्रधान-इन्द्र या राजा आदि भी जिन्हें क्षोभ न पहुँचा सके और जो द्रव्य, नय, प्रमाण आदि के सूक्ष्म ज्ञान के धारक । (२६) विद्याप्रधान-रोहिणी, प्रज्ञप्ति आदि विद्याओं के धारक मन्त्रप्रधान-विषापहरण, व्याधिनिवारण और व्यन्तरोपसर्गनाशक आदि मन्त्रों के ज्ञाता । * (३१) वेदप्रधान-ऋग्वेद, यजुर्वेद आदि वेदों के ज्ञाता (३२) ब्रह्मप्रधान-ब्रह्मचर्य में सुदृढ़ रहने वाले, तथा 'जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ' इत्यादि पागम के अनुसार आत्मा-परमात्मा का रहस्य भलीभाँति समझने वाले (३३) नयप्रधान-नैगम आदि सातों नयों की स्थापना करने वाले और उनका यथातथ्य स्वरूप जानने वाले (३४) नियमप्रधानअभिग्रह आदि नियमों के धारक और प्रायश्चित्तविधि के ज्ञाता (३५) सत्य
* प्राचार्य विद्याओं और मंत्रों के ज्ञाता होते हैं किन्तु उनको प्रयोग नहीं करते।