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® जैन-तत्त्व प्रकाश
का देहमान, एक पल्योपम का आयुष्य और ६४ पृष्ठ करंडक (पसलियाँ) रह जाते हैं । एक दिन के अन्तर पर आहार की इच्छा होती है, तब पूर्वोक्त प्रकार का आहार करते हैं । पृथ्वी का स्वाद गुड़ जैसा रह जाता है। मृत्यु से छह माह पहले युगलिनी पुत्र-पुत्री के जोड़े को जन्म देती है। ७३ दिनों तक पालन-पोषण करने के पश्चात् वह जोड़ा स्वाबलम्बी हो जाता है और सुखपूर्वक विचरने लगता है। शेष सब कथन पहले के समान ही समझना चाहिए ! इन तीनों आरों के तिर्यश्च भी युगलिया होते हैं ।
तीसरे आरे के तीन विभागों में से दो विभागों तक उक्त रचना रहती है। तीसरे आरे के ६६,६६,६६,६६,६६,६६,६६,६६,६६,६६,६६ (छयासठ लाख करोड़, छयासठ हजार करोड़, छयासठ करोड़, छयासठ लाख, छयासठ हजार, छयासठ सौ छयासठ) सागरोपम बीत जाने पर काल-स्वभाव के प्रभाव से, कल्प वृक्षों से पूरी वस्तु प्राप्त नहीं होती और इसी कारण युगल मनुष्यों में परस्पर विवाद-झगड़ा होने लगता है । मानो, इस विवाद का अन्त करने और झगड़ों को मिटाने के लिए क्रम से पन्द्रह कुलकरों की उत्पत्ति होती है। यह कुलकर अपने-अपने समय में प्रतापशाली
और विद्वान् मनुष्य होते हैं। यह तत्कालीन समाज के मर्यादा-पुरुष होते हैंसमाज-व्यवस्थापक होते हैं। प्रारंभ के पाँच कुलकरों के समय तक हकार की दण्ड-नीति प्रचलित होती है। अर्थात् जब कोई मनुष्य कोई अशोभनीय कार्य करता है तो उसे कुलकर 'हा ! ऐसा शब्द कहते हैं। अर्थात् उसके कृत्य पर खेद प्रकट करते हैं । अपराधी के लिए यही दण्ड पर्याप्त होता है । इससे वह लजित हो जाता है। इसके आगे के पाँच कुलकरों तक मकार की
___* पन्द्रह कुलकरों की आयु--पहले कुलकर की पल्योपम का दसवाँ भाग, दूसरे की पल्योपम का सौवाँ भाग, तीसरे की पल्योपम का हजारवाँ भाग, चौथे की पल्योपम का दस हजारवाँ भाग, पाँचवें की पल्पोपम का एक लाखवाँ भाग, छठे की पल्योपम का दस लाखवाँ भाग, सातवे की पल्योपम का करोड़वों भाग, आठवे की पल्योपम के दस करोड़वाँ भाग, नौवें की पल्योपम का सौ करोड़वाँ भाग, दसवें की पल्योपम के हजार करोड़वाँ भाग, ग्यारहवें की पल्योपम के दस हजार करोड़वाँ भाग. बारहवें की पल्योपम का एक लाख करोड़वाँ भाग, तेहरवें की पल्योपम के दस लाख करोड़वाँ भाग, चौदहवें की एक पल्योपम के कोड़ाकोड़ीवों भाग और पन्द्र कुलकर की ८४ लाख पूर्व की आयु होती है। पद्मपुराण) ।