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* सिद्ध भगवान्
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साम्पराय और यथाख्यात नामक तीन चारित्र (७) पुलाकलब्धि (८) आहारक शरीर (8) क्षायिक सम्यक्त्व और (१०) जिनकल्पी मुनि ।
निम्नलिखित ३० बोलों में फेरफार हो जाता है:- (१) नगर, ग्राम सरीखे हो जाते हैं (२) ग्राम श्मशान सरीखे हो जाते हैं (३) सुकुलोत्पन्न दास-दासी होते हैं (४) राजा यम की तरह क्रूर दण्ड देने वाले हो जाते हैं (५) कुलीन स्त्रियाँ दुराचारिणी होती हैं ( ६ ) पुत्र, पिता की आज्ञा भङ्ग करने वाले होते हैं (७) शिष्य गुरु की निन्दा करने वाला होता है (८) कुशील मनुष्य सुखी होते हैं (E) सुशील मनुष्य दुखी होते हैं (१०) सर्प, विच्छू, डाँस-मच्छर मत्कुण आदि क्षुद्र जीवों की उत्पत्ति अधिक होती है (११) दुष्काल बहुत पड़ते हैं (१२) ब्राह्मण लोभी हो जाते हैं (१३) हिंसा को धर्म बतलाने वाले बहुत होते हैं (१४) एक मत के अनेक मतान्तर हो जाते हैं (१५) मिथ्यात्व की वृद्धि होती है (१६) देवदर्शन दुर्लभ हो जाता है (१७) वैताढ्य पर्वत के विद्याधरों की विद्या का प्रभाव मन्द पड़ जाता है (१८) दुग्ध आदि सरस वस्तुओं की स्निग्धता ( चिकनाहट ) कम हो जाती है (१६) पशु अल्पायु हो जाते हैं (२०) पाखण्डियों की पूजा होती है (२१) चौमासे में साधुओं की स्थिति के योग्य क्षेत्र कम रह जाते हैं (२२) साधु की बारह और श्रावक की एकादश प्रतिमाओं का पालन करने वाला कोई नहीं रहता (२३) गुरु, शिष्य को पढ़ाते नहीं (२४) शिष्य अविनीत हो जाते हैं (२५) अधर्मी, कदाग्रही, धूर्त, दगाबाज और क्लेश करने वाले लोग अधिक होते हैं (२६) धर्मात्मा, सुशील और सरल स्वभाव वाले लोगों की कमी हो जाती है (२७) उत्सूत्र प्ररूपणा करने वाले, लोगों को भ्रम में डाल कर फँसाने वाले नाम मात्र के धर्मात्मा ज्यादा होते हैं (२८) श्राचार्य अलग-अलग सम्प्रदाय स्थापित करके आत्मस्थापी ( अपनी जमाने वाले ) और पर - उत्थापी ( दूसरों की उखाड़ने वाले ) होते हैं (२६) म्लेच्छ राजा अधिक होते हैं और (३०) लोगों की धर्म पर प्रीति कम हो जाती है ।
यह तीस बातें क्रमशः अधिक-अधिक प्रचण्ड रूप धारण करती चली जाती हैं। पंचम आरे के अन्तिम दिन देवेन्द्र ( शक्रेन्द्र) का स मान होता है । तब इन्द्र आकाशवाणी करते हैं-- 'हे लोको !