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* जैन-तत्त्व प्रकाश
करके सत्य और व्यवहार वचन का यथोचित प्रयोग करे । श्रदारिक, श्रदारिकमिश्र, वैक्रिययोग, वैक्रियमिश्रयोग, आहारकयोग, आहारकमिश्रयोग
भय के कारण झूठ बोल जाना । (८) हास्य असल हमी- दिल्लगी में झूठ बोलना (६) आख्यायिका -असत्य - व्याख्यान आदि में बढ़ा-चढ़ा कर बात कहना - सूई का मूसल कर देना (१०) शका-असत्य - संशय के वश होकर साहूकार को भी चोर कह देना । इन क्रोध आदि दुर्गुणों से प्रेरित होकर जो भाषण किया जाता है उसे असत्य ही समझना चाहिए ।
कुछ अंशों में सच्ची और कुछ अंशों में झूठी भाषा मिश्रभाषा कहलाती है । उसके भी दस प्रकार हैं- (१) उत्पन्नमिश्र--- 1ज दस का जन्म हुआ, ऐसा कहना किन्तु कमज्यादा भी हो । (२) विगतमिश्र -- कम-ज्यादा होने पर भी कहना -- श्राज दस मरे । (३) उभयमिश्र, जैसे आज दस जनमे और दम मरे (४) जीवमिश्र -- जीवों का ढेर देखकर कहना सब जीव हैं, मगर संभव है उसमें कोई निर्जीव भी हो। (५) श्रजीवमिश्र - अधिकांश को मरा देखकर कहना - सब मर गये । (६) जीवाजीवमित्र उक्त दोनो बातें मिली जुली कहना । (७) अनन्तमिश्र - - प्रत्येक काय (एक शरीर में एक जीव वाली वनस्पति) को अन्त काय कहना । (८) परीतमिश्र - अनन्त काय (एक शरीर में अनन्त जीवों वाली वनस्पति को प्रत्येक काय कहना । (६) कालमिश्र - संध्या समय को रात्रि कहना । (१०) अद्धामिश्रतीन प्रहर को दोपहर कहना ।
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जो सच्ची भी न हो और झूठी भी न हो, ऐसी व्यवहार भाषा बारह प्रकार की : - (१) आमंत्रिणीः- हे देवदत्त ! इत्यादि नामों से किसी को सम्बोधन करना, वास्तव में जीव का नाम देवदत्त नहीं है। यह तो कल्पित नाम है, लेकिन यह व्यवहार में सत्य (२) आज्ञापिनी - तुम यह करो, इत्यादि आज्ञा देना श्राज्ञापिनी भाषा है । (३) याचनीमुझे यह दो, इत्यादि याचना करना (४) पृच्छनी - यह कैसे हुआ, इत्यादि पूछना (५) प्रज्ञापनी --जो पाप करेगा सो दुःख भोगेगा, इत्यादि प्ररूपणा करना । (६) प्रत्याख्यानी - यह कार्य मैं नहीं करूंगा, ऐसा कहना । (७) इच्छानुलोमा - जो इच्छा हो सो करो, इत्यादि कहना (८) अनभिगृहीता - अर्थ समझे बिना कहना जो तुम्हारी इच्छा, इत्यादि (E) अभिगृहीता- अर्थ को समझ कर या घबरा कर कहना - अब क्या करू ? इत्यादि । (१०) संशयकारिणी - किसी ने कहा - 'सैन्धव ले आश्रो' । यह सुनकर सोचे कि पुरुष, घोड़ा, वस्त्र और नमक को सैंधव कहते हैं । ऐसे सोचकर कहे इनमें से क्या ले आऊँ ? (११) व्याकृत - यह इसका पिता ही है, ऐसी स्पष्ट अर्थ वाली भाषा बोलना । (१२) अव्याकृत - बच्चे को डराने के लिए कहना - हौवा पकड़ ले जाएगा ! पर हौवा क्या है, सो स्पष्ट नहीं है ।
यह भाषा के ४२ भेद हैं । इनमें असत्य और मिश्रभाषा के २० भेद छोड़ कर शेष २२ प्रकार की भाषा बोलने योग्य है ।
* रक्त मांस हड्डी आदि सात धातुओं का पुतला, मनुष्यों और तिर्यञ्चों का शरीर दारिक योग कहलाता है। श्रदारिकेशरीर पूरा निष्पन्न होने से पहले-पहले दूसरे शरीर