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(५) स्त्रियों के शब्द - गीत आदि सुनना - जैसे मेघ की गर्जना सुनने से मोर को हर्ष होता है, उसी प्रकार पर्दा, दीवाल आदि के दूसरी ओर क्रीड़ा करने वाले दम्पती की कुचेष्टाएँ, शब्द, गायन और हँसी-मजाक की बातें सुनने से विकार की उत्पत्ति होती है ।
आचार्य
(६) भोगे भोगों का स्मरण – एक वृद्धा के घर की छाछ पीकर कुछ मुसाफिर छह महीने बाद वापिस लौटे। तब बुढ़िया ने कहा- मैं तुम्हें जीवित देखकर बहुत प्रसन्न हुई हूँ, क्योंकि तुम्हारे जाने के बाद छाछ में सर्प निकला था । यह शब्द सुनते ही वे मुसाफिर मृत्यु को प्राप्त हो गए । इसी प्रकार पूर्वावस्था में स्त्री के साथ किये हुए भोजन और भोग आदि का स्मरण करने से ब्रह्मचर्य का विनाश होता है ।
(७) कामवर्द्धक भोजन-पान - जैसे सन्निपात के रोगी को दूध-शक्कर मिला कर देना रोगवर्धक होता है, उसी प्रकार सदैव, सरस कामोतेजक भोजन भी ब्रह्मचारी के लिए हानिकारक होता है ।
(८) अधिक भोजन - पान - जैसे सेर की हँडिया में सवासेर खिचड़ी पकाने से हँड़िया फूट जाती है, उसी प्रकार मर्यादा से अधिक आहार करने से अजीर्ण आदि रोग उत्पन्न होते हैं और विकार की वृद्धि होने से ब्रह्मचर्य नष्ट हो जाता है ।
(E) शरीर का शृंगार - जैसे दरिद्र के पास चिन्तामणि नहीं रहता है, उसी प्रकार स्नान, मर्दन, श्रृंगार आदि करके शरीर को आकर्षक बनाने वाले का ब्रह्मचर्य नष्ट हो जाता है ।
ब्रह्मचारी पुरुष को चाहिए कि वह उल्लिखित नौ बातों को, जो ब्रह्मचारी के लिए तालपुट नामक विष के समान हैं, त्याग कर दे । ब्रह्मचारिणी नारी को यही सब बातें पुरुष के विषय में समझ लेनी चाहिए । इनका परित्याग कर नव वाड़ से विशुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए । tara की रक्षा के लिए अन्य मत में भी कहा है:---