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* आचार्य *
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है तो सभी इन्द्रियाँ शान्त रहती हैं। इसलिए इन्द्रियों को काबू में रखने का परमोत्तम, सच्चा और सीधा उपाय यही है कि एक रसना को काबू में कर लिया जाय अर्थात् रसलोलुपता का त्याग करके नियमित और परिमित भोजन किया जाय।
[५] स्पर्शनेन्द्रियः-- जिससे स्पर्श की प्रतीति होती है वह इन्द्रिय स्पर्शेन्द्रिय कहलाती है। स्पर्शेन्द्रिय के विषय अर्थात् स्पर्श आठ हैं :[१] गुरु [भारी], [२] लघु [हलका], [३] शीत [ठंडा], [४] उष्ण [गम], [२] रूक्ष[रूखा], [६] स्निग्ध [चिकना], [७] कोमल और [८] कठोर । इन आठ स्पर्शों वाले पदार्थ सचित्त, अचित्त और मिश्र होते हैं, अतः ८४३२४ भेद हुए । शुभ और अशुभ के भेद से इन के ४८ भेद होते हैं और राग-द्वेष से गुणित करने पर कुल ६६ विकार स्पर्शनेन्द्रिय के होते हैं ।
स्पर्शेन्द्रिय के वश में पड़कर हाथी खाडे में पड़कर वध-बंधन मृत्यु आदि के कष्ट पाता है । अतः राग-द्वेष उत्पन्न करने वाला स्पर्श भोगना उचित नहीं है । स्पर्श की प्राप्ति होने पर राग-द्वेष का भाव नहीं उत्पन्न होने देना चाहिए, क्योंकि राग-द्वेष कर्मबंध के कारण हैं । इससे भविष्य में गंड, गूमड़, कुष्ठ आदि अनेक रोग और अपंगता आदि दुःख प्राप्त होते हैं। स्पर्शेन्द्रिय को वश में करने से आरोग्य सशक्त शरीर और भोगोपभोग की प्राप्ति होती है और उसका त्याग करके जीव क्रमशः मोक्ष प्राप्त करता है।
ब्रह्मचर्य की नौ वाड़
जैसे किसान खेत की रक्षा के लिए, खेत के चारों तरफ काँटों की वाड़ लगाते हैं, उसी प्रकार ब्रह्मचारी पुरुष ब्रह्मचर्यकी रक्षा के लिए नौ वाड़ों का पालन करते हैं । कहा भी है:
आलो थीजणाइएणो, थीकहा य मणोरमा । संथवो चेव नारीणं, तेसिं इंदियदरिसणं ।।