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* जैन-तत्त्व प्रकाश *
कूइयं रुइयं गीअं, हसियं भुत्तासणाणि य । पणीयं भत्तपाणं च, अइमायं पाणभोयणं । गायभूसण-मिट्ट च, कामभोगा य दुजया । नरस्सत्तगवेसिस्स, विसं तालउड जहा ॥
(१) स्त्रीजन से युक्त मकान-जिस मकान में बिल्ली रहती हो, उसी में अगर चूहा रहा तो उसकी खैर नहीं है। किसी भी क्षण उसके प्राणों का अन्त श्रा सकता है, उसी प्रकार जिस मकान में देव की, मनुष्य की अथवा तिर्यंच की स्त्री या नपुंसक का निवास हो, वहाँ ब्रह्मचारी पुरुष रहे तो उसके ब्रह्मचर्य का विनाश हो जाता है। श्रीदशवैकालिकसूत्र में कहा है:
हत्थपायपडिच्छिन्नं, कन्ननासविगप्पियं । अवि वाससयं नारिं, बंभयारी विवज्जए ।
अर्थात-जिसके हाथ और पैर कटे हों, जिसके कान और नाक भी कटी हो, और जो सौ वर्ष की बुढ़िया हो, उससे भी ब्रह्मचारी को दूर ही रहना चाहिए । जिस मकान में ऐसी स्त्री रहती हो, उसमें भी ब्रह्मचारी को नहीं रहना चाहिए।
(२) मनोरम स्वीकथा—जैसे नीबू, इमली आदि खट्टे पदार्थों का नाम लेने से मुंह में से पानी छूटता है, उसी प्रकार स्त्री के सौन्दर्य, शृंगार, लावण्य, हावभाव और चातुर्य का वर्णन करने से विकार उत्पन्न होता है ।
(३) स्त्रियों का परिचय-जैसे गेहूं के आटे में भृरा कोला (पेठा) रखने से उसका बंध नहीं होता है और चावलों के पास नारियल रहने से उसमें कीड़े पड़ जाते हैं, उसी प्रकार स्त्री-पुरुष अगर एक आसन पर बैठे तो उनका ब्रह्मचर्य नष्ट हो जाता है।
(४) स्त्रियों के अंगोपांग देखना—जैसे सूर्य की ओर टकटकी लगाकर देखने से आंखों को हानि पहुँचती है, उसी प्रकार स्त्री के अंगोपांगों को निरखने से ब्रह्मचर्य का नाश होता है। .