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* जैनतख प्रकाश
पहुँचाता, बहुत से फूलों से थोड़ा-थोड़ा रस ग्रहण करके अपने को सन्तुष्ट कर लेता है, इसी प्रकार साधु की आजीविका है। गृहस्थ अपने कुटुम्ब-परिवार के निमित्त जो भोजन बनाते हैं, उसमें से थोड़ा-थोड़ा, जिससे गृहस्थों को किसी प्रकार की कठिनाई न हो, आहार लेकर अपने को तृप्त कर लेता है ।
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भिक्षाचर्या के चार प्रकार हैं: - (१) द्रव्य से (२) क्षेत्र से (३) काल से और (४) भाव से । इनमें से द्रव्य से भिक्षाचर्या के २६ अभिग्रह होते हैं । वे इस प्रकार हैं: - (१) उक्खितचरए - वर्त्तन में से वस्तु निकाल कर दे तो ले, अन्यथा नहीं । (२) निक्खतचरए - वर्तन में वस्तु डालता हुआ दे तो ले, अन्यथा नहीं । (३) उक्खित्त - निखितचरए - बर्तन में से वस्तु निकाल कर फिर डालता हुआ दे तो लेवे, अन्यथा नहीं । (४) निक्खित्तउक्खित्तर - वर्तन में वस्तु को डाल कर फिर निकाल कर दे तो लेवे अन्यथा नहीं (५) वट्टिज्ज माणचरए -- दूसरों के देते २ बीच में दे तो लेना । (६) साहरिज्जमाणचरए – दूसरों से लेता हुआ बीच में दे तो लेना । (७) उवणीचर - - दूसरों को देने के लिए ले जाता हुआ बीच में दे तो लेना । (८) श्रवणीअचरए - दूसरों से लेकर आता हुआ दे तो लेना । (६) उवणी श्रवणीचरए -- किसी को देने जाकर पीछे आता हुआ दे तो लेना । (१०) श्रवणी - उवणीचरए - किसी से लेकर पीछे देने जाता हुआ दे तो लेना । (११) संसट्टचरए - भिड़े (भरे) हुए हाथ से दे तो लेना । (१२) संसचर - विना भरे हाथ से दे तो लेना । (१३) तज्जासंसचरए -- जिस वस्तु से हाथ भरे हों वही वस्तु दे तो लेना । (१४) अन्नायचरए – अपरिचित — जहाँ साधु को कोई पहचानता न हो ऐसे कुल से लेना [१५] मोणचरए - बिना बोले- चुपचाप ले [१६] दिट्ठलाभए - दीखती वस्तु लेना । [१७] श्रदिट्ठ चरए — अनदीखती हुई वस्तु लेना । [१८] पुट्ठेलाभए - 'अमुक वस्तु लेंगे ?" इस प्रकार पूछ कर दी गई वस्तु लेना | [१६] अट्ठलाभ - बिना पूछे जो वस्तु दे उसी को लेना । [२०] भिक्खलाभए – जो निन्दा करके दे उसी से लेना । [२१] अभिक्खला भए - जो स्तुति करके दे उसी से लेना । [२२] अन्ना गिलाए - अरुचिकर आहार