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* सिद्ध भगवान्
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हो जाने पर केवल ज्ञान प्राप्त हो जाय। आयु कम होने से लिंग बदले बिना ही सिद्ध हो जाय वह अन्यलिंगसिद्ध कहलाता है ।
(१३) गृहिलिंग सिद्ध — गृहस्थ के वेष में धर्माचरण करते करते परिणामविशुद्धि होने पर केवलज्ञान प्राप्त कर ले और स्वल्प आयु होने के कारण लिंग बदले बिना ही सिद्ध हो जाय, वह गृहिलिंग सिद्ध कहलाता है ।
(१४) एकसिद्ध-- एक समय में अकेला - एक ही सिद्ध होने वाला । (१५) अनेकसिद्ध – एक समय में दो आदिक १०८ पर्यन्त सिद्ध हों, सिद्ध कहलाते हैं ।
चौदह प्रकार से सिद्ध होते हैं। वे इस प्रकार हैं: - (१) तीर्थ की विद्यमानता में एक समय में १०८ तक सिद्ध हों (२) तीर्थ का विच्छेद होने पर एक समय में १० सिद्ध हों (३) एक समय में २० तीर्थङ्कर सिद्ध हों (४) सामान्य केवली एक समय में १०८ सिद्ध हों। (५) एक समय १०८ स्वयंबुद्ध सिद्ध हों (६) प्रत्येक बुद्ध ६ सिद्ध हों (७) बुद्धबोधित १०८ सिद्ध हों (८) स्वलिंग भी १०८ सिद्ध हों (६) अन्यलिंग १० सिद्ध हों (१०) गृहलिंग ४ सिद्ध हों (११) स्त्रीलिंग २० सिद्ध हों (१२) पुरुषलिंग १०८ सिद्ध हों । यहाँ जो गणना बतलाई है वह सब जगह एक समय से अधिक सिद्ध होने वालों की है ।
पूर्वभवाश्रित सिद्ध- पहले, दूसरे और तीसरे नरक से निकल कर आने वाले जीव एक समय में १० सिद्ध होते हैं। चौथे नरक से निकले हुए ४ सिद्ध होते हैं । पृथ्वीकाय और जलकाय से निकले हुए ४ सिद्ध होते हैं। पंचेन्द्रिय गर्भज तिर्यश्च और तिर्यञ्चनी की पर्याय से तथा मनुष्य की पर्याय से निकल कर मनुष्य हुए १० जीव सिद्ध होते हैं। मनुष्यनी से
ये हुए २० सिद्ध होते हैं । भवनपति, वाणव्यन्तर और ज्योतिषीदेवों से आये हुए २० सिद्ध होते हैं । वैमानिकों से आये १०८ सिद्ध होते हैं और वैमानिक देवियों से आये हुए २० सिद्ध होते हैं ।
क्षेत्राश्रित सिद्ध – ऊँचे लोक में ४, नीचे लोक में २० और मध्य