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® जैन-तत्त्व प्रकाश ®
भोग करे, आहार-वस्त्र-पात्र-मकान आदि किसी भी वस्तु पर ममत्व न धारण करे ; वक्त पर जैसा भी निर्दोष आहार मिल जाय, उसी में सन्तोष माने और यथाकाल शास्त्रोक्त क्रियाएँ करे ।
(४) आदानभाण्डमात्रनिक्षेपणासमिति-उपकरणों को यतनापूर्वक ग्रहण करे और स्थापित करे । भएडोपकरण दो प्रकार के होते हैं:-(१) सदा उछालने के लिए बनाया आहार लेना । (५१) अदिद्व-भीत या पर्दे के पीछे रक्खी हुईदिखाई न देने वाली वस्तु लेना (५२) ठवणा पाहुति:-सा के लिए स्थापना कर रक्खी हुई वस्तु लेना । (यह दोष आवश्यक सूत्र में कहे हैं)।
(५३) परिया-पहले नीरस आहार आया हो तो उसे परठ कर फिर सरस आहार लाना । (५४) दाण-ब्राह्मण आदि को दान देने के लिए बनाया आहार लेना (५५) पुणगढ-पुण्य के लिए बनाया हुआ आहार लेना । (५६) समगढ-शाक्य आदि श्रमणों के लिए बनाया हुआ आहार लेना । (५७) वणीमगढ-दानशाला-सदावर्त का आहार लेना (५८) नियाग-सदा एक ही घर से लेना (५६) शय्यातर-जिसकी आज्ञा लेकर मकान में ठहरे उसके घर से लेना । (१०) राजपिण्ड-राजा के लिए बना हुआ पौष्टिक, कामोत्तेजक, विकारवर्धक मांस, मदिरा, मक्खन, शहद आदि आहार लेना। (६१) किमिच्छम्-बिना कारण मनोज्ञ और सरस आहार माँग-माँग कर लाना और खाना (६२) संघट्ठ-सचित्त मिट्टी, पानी, अग्नि, वनस्पति आदि का संघटा करके (स्पर्श करके) दिये हुए आहार को लेना (६३)अप्पभोयणे-खाना थोड़ा और डालना ज्यादा पड़े ऐसा आहार लेना (६३) परहड़ीवेश्या, भील, चांडाल आदि लोकनिन्दित-नीच कल का आहार लेना (६५) मामगं-जिसने अपने यहाँ आने से मना कर दिया हो उसके यहाँ से आहार लाना (६६) पुव्वकम्म -पच्छाकम्म-गृहस्थ को पहले या बाद में प्रारंभ करना पड़े, ऐसी जगह से आहार लेना (६७) अचियत्त ल-निना मिली या जातिबहिष्कृत के घर से आहार लेना अथवा अप्रीतिजनक घर में से आहार लेना । (यह १५ दोष दशवकालिक सूत्र में कहे हैं) (६८) सयाणापिण्डसमुदानी १२ कुल की गोचरी न करके अपनी ही जाति की गोचरी करना (६६) परिवाडीजातीय भोज में पंगत बैठी हो तो उसे लांघ कर आहार लेना (यह दो दोष उत्तराध्ययन में कहे हैं । (७०) पाहुणभत्त-मेहमानों के लिए बनाया आहार उनके जीमने से पहले ही लेना (७१) मंस-मांस लेना (७२) संखडी-सब जातियों के लिए दिये जाने वाले भोज के स्थान पर जाकर आहार लेना (७३) उल्लंघन-द्वार पर भिखारी खड़ा हो और उसे लांघ कर उसके आगे जाकर आहार लेना (७४) सागारवयंगा-गृहस्थ का कोई काम करने का वायदा करके आहार लेना (७५) कालातिक्रम-सूर्यास्त के बाद या सूर्योदय से पहले आहार लेना। (७६) आज्ञातिक्रमण-तीर्थकर भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन करके आहार लेना । जैसे प्रथम प्रहर में लिया आहार चौथे प्रहर में भोगना (७७) मार्गातिकान्त-मार्ग की मर्यादा (२ कोस) का उल्लंघन करके आहार करना (७८) आउप-जो आमंत्रण करे उसी के घर से