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®सिद्ध भगवान् ॐ
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३३३३३ योजन में वायु भरा है, दूसरे ३३३३३, योजन के काण्ड में वायु और पानी मिले हुए भरे हैं और तीसरे ३३३३३. योजन के काण्ड में सिर्फ पानी भरा है । इन चारों कलशों के मध्य चारों अन्तरों में वज्ररत्नमय छोटे कलशों की नौ-नौ पंक्तियाँ बनी हैं। पहली पंक्ति में २१५ कलश, दूसरी में २१६, तीसरी में २१७ चौथी में २१८, पाँचवीं में २१६, छठी में २२०, सातवीं में २२१, आठवीं में २२२, और नौवीं में २२३ कलश हैं। यह छोटे कलश १००० योजन गहरे, बीच में १००० योजन चौड़े, तलभाग में तथा मुखभाग में १०० योजन चौड़े हैं । इनका दल १० योजन मोटा है। इन सब कलशों के भी तीन-तीन काण्ड हैं। ३३३ योजन से कुछ अधिक भाग में वायु भरी है, ३३३ झाझरा (कुछ अधिक ) में पानी और वायु भरी है और ३३३ झाझेरा योजन में सिर्फ पानी भरा है। छोटे बड़े सब कलश ७८८८ होते हैं । इन कलशों के नीचे के काण्ड की वायु जब गुंजायमान होती है, तब ऊपर के काण्ड से पानी उछल कर नीचे लिखी दकमाला से दो कोस ऊपर चढ़ जाता है । अष्टमी और पक्खी के दिन पानी ज्यादा उछलता है, जिससे समुद्र में भरती आती है। प्रत्येक बड़े कलश पर १७४००० नागकुमार जाति के देव सोने के कुड़छे से पानी को दबाते हैं। इसलिए वे वेलंधर देव कहलाते हैं। इनके दबाने पर भी पानी रुकता नहीं है। उससे १६००० योजन ऊँची और १०००० योजन चौड़ी, समुद्र के मध्य में दकमाला ( पानी की दीवाल ) है। जम्बूद्वीप और धातकीखण्ड में स्थित तीर्थङ्कर, साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका, सम्यग्दृष्टि आदि उत्तम पुरुषों के तप, संयम, धर्म, पुण्य के अतिशय से समुद्र का पानी कभी भी झड़क नहीं डालता है। ____जम्बूद्वीप के चारों द्वारों से दिशाओं और विदिशात्रों में, बयालीस-बयालीस हजार योजन पर १७२१ योजन ऊँचे, नीचे के भाग में १०२२ योजन चौड़े, ऊपर ४२४ योजन चौड़े आठ पर्वत हैं । इन पर्वतों पर वेलंधर देवों के
* पूर्व में गोथूम पर्वत, दक्षिण में उदकभास पर्वत, पश्चिम में शङ्ख पर्वत और उत्तर में दकसीम पर्वत, इन चार पर्वतों पर रहने वाले देव वेलंधर देव कहलाते है और ईशान कोण में कर्कोटक पर्वत, अग्निकोण में विद्युत्प्रभ पर्वत, नैऋत्य कोण में कैलाश पर्वत,