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® जैन-तत्त्व प्रकाश,
पर विजय प्राप्त करने के लिए निकलते हैं तब इस पर्वत पर वे अपना नाम अंकित कर देते हैं। ___ जम्बूद्वीप की उत्तरदिशा के विजय नामक द्वार के अन्दर ठीक भरत क्षेत्र के समान ही ऐरावत क्षेत्र है। इसमें भेद यही है कि इसमें रक्ता और रक्तवती नामक दो नदियाँ हैं, जबकि भरतक्षेत्र की नदियों के नाम गङ्गा और सिन्धु बतलाये जा चुके हैं ।
मेरुपर्वत से दक्षिण में, भरतक्षेत्र की सीमा पर १०० योजन ऊँचा, २५ योजन जमीन में गहरा, २४६२५ योजन लम्बा, १०५२18 योजन (१६ कला) चौड़ा, पीत-स्वर्ण-वर्ण का चुल्ल हेमवन्त नामक पर्वत है। इसके ऊपर ११ कूट हैं । प्रत्येक कूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊँचे हैं । पर्वत के मध्य में १००० योजन लम्बा, ५०० योजन चौड़ा और १० योजन गहरा पद्मद्रह (कुण्ड) है । इस कुण्ड में रत्नमय कमल है, जिस पर श्रीदेवी सपरिवार रहती है। इस पद्मद्रह से तीन नदियाँ निकली हैं। जिनमें गंगा नदी और सिन्धु नदी भरतक्षेत्र में होकर, चौदह-चौदह हजार नदियों के परिवार के साथ पूर्व और पश्चिम के लवणसमुद्र में जाकर मिल गई हैं। तीसरी रोहितास्या नदी पद्मद्रह के उत्तर द्वार से निकल कर हैमवत क्षेत्र में होती हुई, २८००० नदियों के परिवार के साथ पश्चिम के लवण समुद्र में जाकर मिल गई है।
मेरुपर्वत से उत्तर में ऐरावत क्षेत्र की मर्यादा करने वाला, चुल्ल हिमवान् पर्वत के समान ही शिखरि नामक पर्वत है । जैसे चुल्ल हिमवान् पर्वत पर पद्मद्रह है, उसी प्रकार शिखरि पर्वत पर पुण्डरीक द्रह है, जिस पर लक्ष्मीदेवी सपरिवार रहती है । पुण्डरीक द्रह से भी तीन नदियाँ निकलती हैं । इनमें से रक्ता और रक्तवती नामक दो नदियाँ उत्तर की ओर ऐरावत क्षेत्र में होकर, चौदह-चौदह हजार नदियों के परिवार से पूर्व और पश्चिम के लवण समुद्र में जा मिली हैं । और तीसरी सुवर्णकूला नदी दक्षिण तरफ हैरण्यवत क्षेत्र में होकर २८००० नदियों के परिवार के साथ पूर्व के लवण समुद्र में जाकर मिल गई है।