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® जैन-तत्त्व प्रकाश
रम्यकवास क्षेत्र के मध्य में हो ५६००० नदी के परिवार से पूर्व के लवण समुद्र में जाकर मिली है।
मेरुपर्वत से दक्षिण दिशा में महाहिमवान पर्वत के पास, उत्तर दिशा में, पूर्व-पश्चिम ७३६०१ योजन (१७ कला), उत्तर-दक्षिण में ८४२११ योजन (१ कला) हरिवास क्षेत्र है। इसमें रहने वाले युगलियों का शरीर पन्ना के समान हरा है। यहाँ दूसरे आरे के समान रचना ( हालतअवस्था) सदैव रहती है। इसके मध्य 'विकटपाती' नामक वृत्त वैताढ्य पर्वत है।
मेरु के उत्तर में, रुक्मि पर्वत के पास दक्षिण में हरिवास क्षेत्र के समान ही रम्यकवास क्षेत्र है । विशेषता यह है कि रम्यकवास के युगलियों का शरीर बड़ा ही रमणीक है। इसके मध्य में गन्धपाति नामक वृत्ताकार वैताब्य पर्वत है।
मेरु से दक्षिण में, हरिवास क्षेत्र के निकट उत्तर में पृथ्वी से ४०० योजन ऊँचा, १०० योजन जमीन में गहरा, पूर्व-पश्चिम में १४१५६० योजन (२ कला ) लम्बा, उत्तर-दक्षिण में १६८४२ योजन चौड़ा माणिक के समान रक्तवर्ण वाला, 'निषध' पर्वत है। इसके ऊपर नौ कूट हैं और मध्य में ४००० योजन लम्बा, २००० योजन चौड़ा और १० योजन गहरा 'तिगिंछ' नामक द्रह है। इसके मध्य रत्नमय कमलों पर धृतिदेवी सपरिवार रहती है। इस द्रह से दो नदियाँ निकलती हैं-हरिसलीला
और सीतोदा । हरिसलीला नदी दक्षिण की ओर हरिवास क्षेत्र के मध्य में होती हुई ५६००० नदियों के परिवार के साथ पूर्व के लवणसमुद्र में मिलती है। सीतोदा नदी उत्तर की तरफ देवकुरु क्षेत्र के चित्र-विचित्र पर्वत के मध्य में होती हुई (१) निषध, (२) देवकुरु (३) सूर (४) सुलस और (५) विद्युत्इन पाँचों* द्रहों के मध्य में से निकल कर, भद्रशाल वन में होती हुई मेरु पर्वत से दो योजन की दूरी पर बहती हुई, विद्युत्प्रभ गजदन्त पर्वत के
___* इन द्रहों के पास दस-दस पूर्व में और दस-दस पश्चिम में, इस प्रकार कुल बीसबीस पर्वत हैं । पाँचों द्रहों के कुल १०० पर्वत दक्षिण दिशा में और १०० ही पर्वत उत्तर दिशा में हैं। ...