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ॐ सिद्ध भगवान् 8
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सेवन नहीं करता अर्थात् हिंसा आदि से निवृत्त होकर नवकारसी आदि इच्छानिरोध रूप प्रत्याख्यान का ज्ञान प्राप्त नहीं करता, हिंसा आदि पाप के कार्यों को पुण्य का कार्य बतलाने की धृष्टता करता है, क्रोध आदि (अनन्तानुबंधी) कषायों से निवृत्त नहीं होता, वह अज्ञानी मृत्यु के पश्चात् नीचा सिर करके अन्धकारमय महाविषम नरक में जाता है और दुःख पाता है।
भवनपति देवों का वर्णन
पूर्वोक्त प्रथम नरक के १२ अन्तर असंख्यात योजन के लम्बे-चौड़े और ११५८३ योजन के ऊँचे हैं। उनके दो विभाग हैं-उत्तर विभाग और दक्षिण-विभाग। बारह अन्तरों में से एक सबसे ऊपर का और दूसरा सबसे नीचे का खाली पड़ा है। बीच के दस अन्तरों में अलग-अलग जाति के भवनपति देव रहते हैं। दस में से पहले अन्तर में असुरकुमार जाति के भवनपति देव रहते हैं। दक्षिण विभाग में उनके ४४ लाख भवन हैं। चमरेन्द्र उनके स्वामी हैं । चमरेन्द्र के ६४००० सामानिक देव, २,५६००० आत्मरक्षक देव
और छह अग्रमहिषियाँ (बड़ी इन्द्रानियाँ) हैं। प्रत्येक इद्रानी का भी छहछह हजार का परिवार है। चमरेद्र की सात अनीक (सेनाएँ) हैं। तीन प्रकार की परिषद् हैं। प्राभ्यन्तर परिषद् के २४००० देव, मध्यपरिषद् के २८००० देव और बाह्य परिषद् के ३२००० देव हैं। इसी प्रकार आभ्यन्तर परिषद् की ३५० देवियाँ, मध्यपरिषद् की ३०० देवियाँ और बाह्यपरिषद् की २५० देवियाँ हैं। देवों की आयु जघन्य १०००० वर्ष की और उत्कृष्ट एक सागरोपम की है। इनकी देवियों की आयु जघन्य १०००० वर्ष की और उत्कृष्ट ३॥ पन्योपम की है।।
दक्षिण विभाग की तरह उत्तर के विभाग में ४० लाख भवन हैं। इनके स्वामी बलेन्द्र हैं। बलेन्द्र के ६०,००० सामानिक देव, २,४०,०००
आत्मरक्षक देव, छह अग्रमहिषियाँ (जिनका छह-छह हजार का परिवार है), सात अनीक* और तीन परिषद् हैं। आभ्यन्तर परिषद् के २०,००० देव,
_* (१) गन्धर्व की (२) नाटक की (३) अश्व की (४) हस्तियों की (५) रथ की (6) पैदल की और (७) भैंसों की-यह सात प्रकार की सेना है।