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ॐ सिद्ध भगवान्
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से उबलती हुई नदी में नारकियों को फेंक कर उन्हें तैरने के लिए मजबूर करते हैं।
(१४) खरस्वर-जैसे शौकीन लोग बगीचे की हवा खाते हैं, उसी प्रकार यह परमाधामी विक्रिया से बनाये हुए शाल्मली वृक्षों के समान वन में नारकियों को बिठला कर हवा चलाता है, जिससे तलवार की धार के तीखे पत्ते उन वृक्षों से गिरते हैं और नारकियों के अङ्ग कट-कट कर गिरते हैं । यह शाल्मली वृक्षों पर चढ़ा कर करुण चिल्लाहट करते हुए नारकियों को खींचते हैं।
(१५) महाघोष—जैसे निर्दय ग्वाला बकरियों को बाड़े में स-ट्स कर भरता है, उसी प्रकार यह परमाधामी घोर अन्धकार से व्याप्त सँकड़े कोठे में नारकियों को ढूंस-ठूस कर-खचाखच भरते हैं और वहीं रोक रखते हैं।
- मांसाहारी जीव नरक में उत्पन्न होते हैं । यमदेव (पूर्वोक्त परमाधामी) उनके शरीर का मांस चिमटे से नौंच कर, तेल में तलकर या गरम रेत में भून कर उन्हीं को खिलाते हैं। कहते हैं-ले, तुझे मांस भक्षण करने का बड़ा शौक था ! अब उसका फल चख ! जैसे तुझे दूसरे प्राणियों का मांस पसन्द था, वैसे ही अब इसे भी पसन्द कर !
जो लोग मदिरा-पान करके अथवा बिना छना पानी पीकर नरक में उत्पन्न होते हैं, उनको तांबे, सीसे, लोहे आदि का उबलता हुआ रस, संडासी से जबरदस्ती मुँह फाड़ कर पिलाते हैं और कहते हैं-लीजिए न, इसका भी तो शौक कीजिए ! यह भी बड़ी लज्जतदार चीज़ है !
जो वेश्यागमन और पर-स्त्रीसेवन करके नरक में जाते हैं, उन्हें भाग में तपा-तपा कर लाल बनाई हुई फौलाद की पुतली का बलात्कार से गाढ़
आलिंगन कराते हैं और कहते हैं-अरे दुष्ट व्यभिचारी ! अपने कुकर्म का फुल भोग ! तुझे पर-स्त्री प्यारी लगती थी तो अब क्यों रोता है ? इस पुतली को भी छाती से लगा!