Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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, वके लक्षणमें ज्ञान आदिके अभावको भी अजीवका लक्षण कहा है। अभाव जब कोई पदार्थ नहीं तब , वह लक्षण नहीं हो सकता ? सो ठीक नहीं। जिस तरह भावको हेतुका अंग माना है उसीतरह अभाव
भी हेतुका अंग है अर्थात् 'पक्षसत्व सपक्षेसत्व विपक्षाव्यावृत्त्व अबाधितविषयत्व और असत्पतिपक्षत्व ये पांच हेतुके अंग स्वीकार किए गये हैं। यहांपर पक्षमें हेतुका रहना, सपक्षमे हेतुका रहना ये 6 दो अंग तो भावस्वरूप हैं किंतु विपक्षमें हेतुका न रहना, हेतुका विषय बाधित न होना और हेतुका है दूसरा कोई प्रतिपक्ष न रहना ये तीन अंग अभावस्वरूप हैं। यदि अभाव कोई पदार्थ न माना जायगा है तो विपक्षाव्यावृत्त्व आदि तीन हेतुके अंग ही न माने जा सकेंगे, इस रीतिसे जब अभाव नामका भी पदार्थ संसारमें निर्वाधरूपसे मौजूद है तब अभावको लक्षण मानना अयुक्त नहीं। तथा सर्वेषां युगपसाप्तिः संकरः सब पदार्थों की एक स्वरूपसे प्राप्ति होना संकर दोष कहा जाता है। पदार्थों में जो भेद है वह अभाव पदार्थके माननेसे ही सिद्ध होता है क्योंकि घटका अभाव पटमें है अर्थात् घडा कपडा
स्वरूप नहीं इसलिये घटसे पट भिन्न है । इसीरूपसे अभाव पदार्थ के ही आधारपर मठ आदिसे वृक्ष हूँ आदि भिन्न हैं यदि अभावको पदार्थ न माना जायगा तब घट आदिसे पट आदि भिन्न पदार्थ तो है हो न सकेंगे किंतु सब एक ही स्वरूप हो जायगे इस रीतिसे संकर दोष होगा । इसलिये अभाव पदार्थ है का लोप नहीं कहा जा सकता।यदि कदाचित् यह शंका की जाय कि
ज्ञानपूर्वक चेष्टाओंसे ज्ञानका निश्चय होता है और ज्ञानपूर्वक चेष्टा हित करनेवाली चीजके ग्रहण और अहित करनेवाली चीजके छोडनेसे जान पडती है। कहा भी है१ सप्तभंगीतरंगिणी पृष्ठ ६।
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