Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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विशेष-'उपर्युपरि यहाँपर कल्प शब्दका संबन्ध मानना सर्वसम्मत नहीं है क्योंकि 'वैमानिकाः
अध्याच | इस सूत्रको अधिकार सूत्र कह आये हैं इसलिये इससूत्रमें उसीका संबंध मानना ठीक होगा इस
रीतिसे जिसप्रकार वैमानिक देव कल्पोपपन्न और कल्पातीत हैं इसप्रकार 'कल्पोपपन्नाः कल्पातीताश्च' इस सूत्रमें वैमानिकोंका संबंध है उसीप्रकार वैमानिक देव ऊपर ऊपर हैं, इसरूपसे 'उपर्युपरि' इस सूत्रमें भी वैमानिक देवोंका ही संबंध है । यदि यहॉपर यह कहा जाय कि पहिले देवोंका ऊपर ऊपर अवस्थान आनिष्ट कह आये हैं, यदि उपर्युपरि' यहांपर वैमानिक देवोंका संबंध कर उनका ऊपर ऊपर अव-1151 | स्थान माना जायगा तो अनिष्ट होगा ? सो ठीक नहीं। विशेषणरहित केवल देवोंका यदि ऊपर ऊपर अवस्थान माना जाय तव आनष्ट कहा जासकता है किंतु वहां तो मध्यमें स्थित इंद्रक विमान, तिर्यक् है
अवस्थित श्रोणिबद्ध और प्रकीर्णक विमानरूप कल्पोपपन्नत विशेषणविशिष्ट देवोंका तथा कल्पाती| तत्व (नवौवेयकल) आदि विशिष्ट देवोंका ग्रहण है। इसप्रकारके विशेषणविशिष्ट देवोंका ऊपर ऊपर | P | रहना शास्त्रसम्मत है अत एव इष्ट है इसलिये कल्पोपपन्न और कल्पातीत दोनोंकी अपेक्षा 'उपर्युपरि' | यहांपर वैमानिक शब्दका ही संबंध ठीक है ॥१८॥
कितने कल्पविमानोंमें देवोंकी स्थिति है ? सूत्रकार इस बातका उल्लेख करते हैं- ... . १-श्लोकवार्तिक । यद्यपि यह कथन स्थल दृष्टिसे पूर्वापर विरुद्धसा मालूम होता है कि राजवार्तिककारने विमानोंको अपर उपर कहा है और श्लोकवार्तिककारने देवोंको ऊपर १ कहा है, तथापि सूक्ष्मदृष्टिसे दोनों एक रूप ही पड़ते हैं, श्लोकवार्तिककारने केवल देवोंकों ऊपर २ नहीं कहा है किंतु विमानोंसे विशिष्ट देवोंको कहा है, विमानसहित.देव कहा जाय.या विमान कहा जाय | दोनोंका एक ही अर्थ है।- . .
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