Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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|६|अनुर्दिश भी नौ हैं यह बात प्रगट करने के लिये 'नवसु' यह जुदा विभक्त्यंत पद कहा गया है इसलिये / अध्यायबरा० भाषा
कोई दोष नहीं। प्रश्न-वेयकोंसे विजय आदि विमानोंके पृथग्रहणका फल जान लिया परन्
सिद्धि विमानका पृथग्ग्रहण क्यों किया गया? उत्तर११३५
सर्वार्थसिद्धिपृथग्रहणं विकल्पनिवृत्त्यर्थं ॥४॥ जिसप्रकार नीचे के विमानोंमें जघन्य और उत्कृष्ट दोनों प्रकारको स्थितिके भेद हैं इसप्रकार सर्वाथसिद्धि विमानमें जघन्य और उत्कृष्ट भेद नहीं यह बतलानेके लिये सूत्रमें सर्वार्थसिद्धि विमानका पृथ|| ग्रहण है इसरीतिसे यहांपर यह अर्थ समझ लेना चाहिये
___अघो ग्रैवेयकके तीन भागों से प्रथम भागमें उत्कृष्ट स्थिति तेईस सागर प्रमाण हैं। दूसरे भागमें 5 पारा चौवीस सागर और तीसरे भागमें पञ्चीस सागर, प्रमाण है। मध्य अवेयकके प्रथम भागमें छव्वीस सागर ||5|
प्रमाण, दूसरेमें साईस सागर प्रमाण और तीसरेमें अट्ठाईस सागर प्रमाण है । उपरि अवेयकके प्रथम | भागमें उनतीस सागर प्रमाण, दूसरे भागमें तीस सागरप्रमाण और तीसरे भागमें इकतीस सागर प्रमाण है
है। नव अनुदिश विमानोंमें उत्कृष्ट स्थिति वचीस सागर प्रमाण है। विजय वैजयंत जयंत और अपरा|जित इन चार अनुचर विमानोंमें उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागर प्रमाण है । सर्वार्थसिद्धि विमानमें भी
| तेतीस सागर प्रमाण है । मेद इतना ही है कि सार्थसिद्धि विमानमें तेतीस सागरसे कम अधिक स्थिति |६|| नहीं है अर्थात् जघन्य उत्कृष्ट ऐसे दो भेद सर्वार्थसिद्धि नहीं हैं किंतु केवल तेतीस सागर प्रमाण ही स्थिति है ॥ ३२॥
मनुष्य और तियचोंकी उत्कृष्ट और जघन्यस्थिति पहिले कह दी गई है परंतु देवोंकी उत्कृष्टस्थिति
HEALUCBHASABASABSEBARIBABAR
RECAREASURBARRESAASANASIANS