Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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वरा
भाषा
अध्याय
१२०७
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| विषय करनेवाला है क्योंकि यह नय समस्त वस्तुओंके स्वरूपोंको सत्में अंतर्भाव कर संग्रह करता । है- अर्थात् इस संग्रह नय के द्वारा सत् शब्दके कहनेसे ही समस्त वस्तुओंका संग्रह हो जाता है तथा व्यवहार नय असत पदार्थको विषय करता है क्योंकि भिन्न भिन्न रूपसे सत्त्वका परिग्रह नहीं हो | सकता तथा सत्त्व स्वस्वरूपकी अपेक्षा ही हो सकता है, परस्वरूपकी अपेक्षा नहीं । व्यवहार नयमें अन्य है। पदार्थकी अपेक्षा रहती है इसलिये अन्यकी अपेक्षा सत्त्व न होनेके कारण व्यवहारनय असत्त्वको ही
विषय करता है। ऋजुसूत्र नयका विषय वर्तमान काल है क्योंकि जो पदार्थ भूतकालीन था वह नष्ट हो । Mil चुका है उसका व्यवहार नहीं हो सकता इसलिये वह ऋजुसूत्र नयका विषय नहीं हो सकता और जो 5|| पदार्थ आगे जाकर उत्पन्न होनेवाला भविष्यत्कालीन है वह अभी अनुत्पन्न है इसलिये उसका भी 18
व्यवहार न हो सकनेके कारण वह भी ऋजुसूत्र नयका विषय नहीं हो सकता। __. ये तीनों अर्थनय अर्थात् संग्रह व्यवहार और ऋजुसूत्र एक एक स्वरूप हैं एवं आपसमें है।
मिलकर सप्तभंगी वाक्योंको उत्पन्न करते हैं। उनमें-आदिका भंग संग्रहस्वरूप एक है। दूसरा व्यवहारहै स्वरूप एक है । तीसरा भंग भेदस्वरूप क्रमसे संग्रह व्यवहारनयस्वरूप है । चौथा मिला हुआ संग्रह
व्यवहारनयस्वरूप है। पांचवां भंग संग्रहस्वरूप और अभेदस्वरूप संग्रह व्यवहारस्वरूप है। छठा भंग व्यवहारस्वरूप और अभेदात्मक संग्रह व्यवहारस्वरूप है एवं सातवां भंग संग्रहस्वरूप व्यवहारस्वरूप | एवं अभेदात्मक संग्रह व्यवहारस्वरूप है । इसीप्रकार ऋजुसूत्र के अंदर भी योजना कर लेनी चाहिये।
अर्थात् पहिला भंग संग्रह स्वरूप है । दूसरा ऋजुसूत्रस्वरूप है। तीसरा आपसमें भेदात्मक क्रमसे प्राप्त संग्रह ऋजुसूत्रस्वरूप है। चौथा मिला हुआ संग्रह ऋजुसूत्रस्वरूप है । पांचवां संग्रहस्वरूप और अमि- १२००
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