Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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| उदाहरण एक ही फलमें रहनेवाला कालापन और पीलापन है क्योंकि पहिले ही पहिले आममें काला ||
अध्याव पन रहता है फिर पकते समय जिससमय उसमें पीलापन होता है वह उम कालेपनको सर्वथा नष्टकर ही उत्पन्न होता है। कालापन और पीलापन दोनों एक साथ एक जगह नहीं रह सकते । परंतु जिसप्रकार | कालापन और पीलापनका पूर्वकाल और उत्तरकालमें रहना प्रत्यक्ष सिद्ध है एवं पूर्वकालमें रहनेवाले | | कालेपनको नष्ट कर ही जिसप्रकार पीलापन उत्पन्न होता है, उसप्रकार अस्तित्व नास्तित्वमें एक पूर्वकालमें रहनेवाला हो और दूसरा उत्तरकालमें रहनेवाला हो यह बात नहीं तथा अस्तित्व, नास्तित्वको मिटाकर उत्पन्न हो और नास्तित्व अस्तित्वको मिटाकर उत्पन्न हो यह भी बात नहीं है किंतु वे दोनों एक जगह एक साथ रहनेवाले धर्म हैं। यादे कदाचित् यहाँपर यह माना जायगा कि-अस्तित्व और नास्तित्व धर्म पूर्व और उत्तरकालभावी ही हैं तब जिससमय पदार्थमें अस्तित्व रहेगा उससमय नास्तित्व नहीं रह सकता इसलिये 'स्यादस्त्येव जीवः' यहांपर जीवकी सचामात्र ही समस्त संसार सिद्ध होगा तथा जिस समय नास्तित्व रहेगा उससमय अस्तित्व तो रहेगा नहीं फिर अस्तित्व के आधीन जो बंध मोक्ष आदिको व्यवस्था है वह भी सब नष्ट हो जायगी तथा यह भी बात है कि-जो पदार्थ सर्वथा असत् होगा उप्तका कोई स्वरूप न सिद्ध होगा एवं जो पदार्थ सर्वथा सत होगा उसका अभाव भी न हो सकेगा क्योंकि | "नवासतो जन्म सतो न नाशः” अर्थात् जो पदार्थ सर्वथा असत् है उसका जन्म नहीं और जो पदार्थ || || सर्वथा सत् है उसका नाश नहीं ऐसा आर्षवचन है । यदि जीवको सर्वथा असत् माना जायगा तो देव आदि रूपसे उसका स्वरूपलाभ न होगा और यदि उसे सर्वथा सत्स्वरूप माना जायगा तो उसका पर्याय १-वृहत्स्वयंभूस्तोत्र । 'नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः ऐसा भी वचन है।
SAUGASTRAMERIAL