Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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व०रा० माषा
||६|| भान करानेके कारण अनेकांतवाद संशयका कारण है ? सो ठीक नहीं । सामान्य पदार्थके प्रत्यक्षसे विशेष | १२१५
पदार्थोके अप्रत्यक्षसे किंतु विशेष पदार्थोंके स्मरणसे संशय होता है जिसतरह किसी प्रदेशमें एक सूखा 13 ६ वृक्ष है जिसे देखकर स्थाणु और पुरुष दोनोंकी संभावना हो सकती है उस प्रदेशमें कुछ अंधकार हो जाने त पर केवल स्थाणु और पुरुष दोनोंमें रहनेवाले ऊर्ध्वतासामान्यको देखनेवाले, स्थाणुमें रहनेवालेटेडापन
खोलार घोंसलादि विशेष एवं पुरुषमें रहनेवाले वस्त्र धारना, शिर खुजाना, चोटोका खुजलाना आदि विशेषोंको न देखनेवाले किंत उन्हें स्मरण करनेवाले पुरुषको 'यह स्थाणु है वा पुरुष है? ऐसा संशय
होता है परंतु अनेकांतवादमें इसप्रकारके संशयक संभावना नहीं क्योंकि वहांपर स्वरूप आदि विशेषों 5 की अपेक्षा अस्तित्व नित्यत्व आदि और पररूपादि विशेषोंकी अपेक्षा नास्तित्व अनित्यत्व आदि विशेषोंकी निर्वाधरूपसे उपलब्धि है इस रूपसे अनेकांतवादमें विशेष धर्मोंकी उपलब्धि होनेके कारण संशयका लक्षण न घटनेसे वह संशयका कारण नहीं हो सकता। यदि यहॉपर यह शंका उठाई जाय कि| घट आदि पदार्थों में अस्तित्व आदि धर्मोको सिद्ध करनेवाले जो कारण बतलाये गये हैं वे प्रतिनियतरूप हैं कि अप्रतिनियतरूप हैं। यदि कहा जायगा कि प्रतिनियतरूप नहीं है तो जो पुरुष एक जगह | आस्तित्व नास्तित्वकी सचामें विचार करनेवाला है उसके सामने अस्तित्व नास्तित्व के स्वरूपका प्रतिपादन नहीं हो सकता क्योंकि जब उनके उत्पादक कारणोंका कोई भी नियम नहीं है तब वादी उनकी सिद्धिके लिये जिन कारणोंका उल्लेख करेगा प्रतिवादी उनसे भिन्न कारणों का उल्लेख करेगा । यदि कहा
जायगा उनके उत्पादक कारण प्रतिनियत ही हैं तब एक हो वस्तुमें आपसमें विरुद्ध अस्तित्व नास्तित्वको | सिद्ध करनेवाले कारणों के विद्यमान रहनेपर संशयका लक्षण घट जानेपर संशयका होना रुक नहीं सक्ता
या १२१५
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