Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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है, इसलिये अनेकांनबाद नियममे मंशयका कारण? ? मो ठोर नहीं। जिसमकार एक ही परमो आने
पुत्रकी अपेक्षा पिनापना है और अपने पिनाकी अपेक्षा पुरना, ये दोनों आपनमें विरोधी नहीं। ₹ माने जाने क्योंकि विवक्षा भेदमे पिना और पनका भेद अयान पर ही पुनिया मेंदमे पुत्र , भोकद दिया जाता है और पिना भी दिया जाना नया अन्वयानोका आदितु में..
महानम (रमोई साना) आदि मपक्षकी अपेक्षा माप और नाराय आदि शिक्षाको अपेक्षा असर र माना जाता है मलिये जिमप्रकार यहागर एकदम आदिनों अ नाम्निाका आपको विरोध नहीं अर्थात विवक्षाके भेदपे एकही गम आदिनु और मन दोनों का माना जाना है उमीप्रकार जीवमें भी सम्परूपी अा अन्निव और परीक्षा नामित इमप्रकार अवन्छेदके भेदमे एक पदावों अनानातिन अपंगा दांना दोनों का एक नगर रहना विरोधोरसादक नहीं। हमपमे नित नानिमाविमा अनेजादो मनपछी माना करना निर्मूल हैं। बहनमे लोग यह कहने कि अनादपि आदि बाद दोनों की माना उनका कहना इमप्रकार है
जिसप्रकार शीत और ण पदार्थ आपम विगी सिएमजगह नहीं माने उभी प्रकार विधि और निधनरूप या मार अभावमा प्रति नाना भी एक जगह नहीं रही
सकते। यहांपर अस्तित्व पदार्थ भावसम्पयोंकि उसकी परिणीति होती है और नागिन ६. अमावस्वरूप मांति मिणवान नर अपम उल्लिधित उमीनीति र नित ही रहेगा वहांपर उमका विरोधी नास्तिसगुण नहीं १६ ममता जनान्तिा रहेगा वहां उसका विरोधी
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