Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 1251
________________ सारा माषा न्याय १२२३ ECRECANSPECIRBE* 9GCCORDARSWAM- 164E पडेगा क्योंकि देवदत्तके शरीरके द्वारा पाक होना असंभव है अथवा देवदत्तके मृतशरीरसे भीपाक होना चाहिये । यदि दूसरा कल्प देवदचका आत्मा लिया जायगा तो देवदत्तका आत्मा पाक करता है यह प्रयोग स्वीकार करना पडेगा जो कि बाधित है क्योंकि यदि केवल आत्मा पाक करनेवाला माना | जायगा तो सिद्धोंकी आत्मा भी पाकका संभव प्राप्त होगा । यदि तीसरा कल्प शरीरावशिष्ट आत्मा। लिया जायगा तो वह है तो ठोक परंतु संसार में प्रयोग होता नहीं इसलिये क्या देवदत्तका शरीर पाक करता है वा आत्मा वा शरीरविशिष्ट आत्मा ये जो प्रयोग कहे गये हैं उनमें एक भी प्रयोग उत्पन्न न जा होनेपर 'देवदत्च पाक करता है यह जो पूर्व परिपाटीसे प्रयोग प्रचलित है वही शरण और युक्त है इस- 181 रीतिसे इसप्रकार शब्दोंके प्रयोगकी प्रवृचि जब पहिले प्रयोगोंके अनुकूल है तब शब्दोंके प्रयोगविषयक || किसीप्रकारकी आपचि प्रकट करना अस्वाभाविक है । इसरीतिसे घटमें पटके अभाव रहनेपर भी 'स्यान्नास्त्येव घटः' यही प्रयोग होगा 'स्यानास्त्येव पटः' वा 'पटो नास्ति' यह प्रयोग नहीं हो सकता और भी यह बात है कि- ' घट आदिमें रहनेवाला जो पट आदि परपदार्थों का अभाव है वह घटसे भिन्न है कि अभिन्न है ? यदि कहा जायगा कि वह पररूपका अभाव भिन्न है तब उस पररूपाभावको भी पर मानकर उसके || अभावकी भी कल्पना करनी पडेगी यदि ऐसा न माना जायगा अर्थात् उस परत्वाभावको पर न माना जायगा तो अनेकांतवादमें उसकी अपेक्षा जो घट आदिको कथंचित् असत् माना है वह न बन सकेगा । तथा वह जो परत्वाभावको पर मानकर उसका अभाव माना गया है उस अभावको पर मानकर उसका भी अभाव कल्पना करना पडेगा तथा उसे भी पर मानकर उसका भी अभाव कल्पना करना पडेगा इस IRSADESCR. मा१२२३

Loading...

Page Navigation
1 ... 1249 1250 1251 1252 1253 1254 1255 1256 1257 1258 1259