Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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3 विना जलके सम्बन्धसे भी अग्निका नाश माना जायगा तव सब जगहकी अग्निका सर्वथा अभाव ही हो अभ्यार 9 जायगा फिर अग्नि का नाम ही संसारसे उठ जायगा। इसी तरह सर्पके साथ नकुलका संयोग होनेपर ही ४
नकुल सर्पका घात करता है यदि विना संयोगके भी सौकाघात माना जायगा तो फिर संसारके समस्त सौका अभाव हो जायगा इसरीतिसे संसारको सर्पशून्य कहना होगा इसलिये मानना पडेगा कि एक कालमें दो पदार्थों का आपसमें संयोग रहनेपर बलवान निर्वलका उत्तर कालमें घात करता है और जहां है पर ऐसी व्यवस्था रहती है वहींपर बध्यघातक विरोध माना जाता है । विरोध की शंका करनेवाले के मतों से
एक क्षणके लिए भी अस्तित्व नास्तित्वकी एक जगह सचा नहीं स्वीकार की गई है इसलिए जब उनका 8 एक जगह एक कालमें क्षणमात्रके लिये भी संयोग नहीं माना जाता तब उनमें बध्यघातक विरोधकी ॐ संभावना नहीं हो सकती। यदि कदाचित् यह कहा जाय कि-हम उनकी एक जगह स्थिति मानेंगे तो है तब भी दोनोंके उत्पादक कारण; समान शक्ति के धारक हैं इसलिये दोनों ही गुग समान शक्तिवाले
होनेके कारण एक बलवान और दुमरा निर्बल तो होगा नहीं फिर उनमें बध्यघातक विरोध कभी है संभव नहीं हो सकता इस रीतिसे सर्प और नौला एवं अग्नि और जलादि उदाहरणोंके समान जब टू है अस्तित्व नास्तित्वमें बध्यघातक विरोधका उपर्युक्त लक्षण नहीं जाता तब यहां उस विरोध की कल्पना है निरर्थक है।
अस्तित्व नास्तित्वमें सहानवस्थान लक्षण विरोध भी नहीं हो सकता क्योंकि जहाँपर दो विरोधी पदार्थों का एक साथ रहना न हो सके वहांपर सहानवस्थान लक्षण विरोध माना जाता है। यह विरोध
१२१० एक जगह एक साथ न रहकर पूर्वकाल और उत्तरकालमें रहनेवाले पदार्थों में माना गया है। इसका
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