Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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है। वही उपकार शब्दका अर्थ है। अस्तित्वका घटके ऊपर उपकार; अस्तित्वविशिष्ट घटका जना देना है।
तो जिस रूपसे घटपर अस्तित्वका उपकार है उसी रूपमे अन्य भी अनंत गुणोंका घटके ऊपर उपकार १९८९
है इसरीतिसे उपकारकी समानतासे घटमें अस्तित्व नास्तित्वादि धर्मोंका उपकारसे अभेद है । जिस || जगहपर घटमें अस्तित्व धर्म रहता है उसी जगहपर नास्तित्व धर्म भी रहता है, यह बात नहीं कि घटके || कंठभागमें तो अस्तित्व रहे और पृष्ठभागमें नास्तित्व रहे इमप्रकार घटमें एकही जगहपर अस्तित्व || नास्तित्व के रहनेपर गुणिदेशकी अपेक्षा अभेद है। जिसप्रकार एक वस्तुस्वरूपसे घटके साथ आखितका | संसर्ग है उसी एक वस्तुस्वरूपसे अन्य भी अनंते धर्मोंका संसर्ग समान होनेसे संसर्गकी अपेक्षा अभेद
है। जो अस्तिशब्द अस्तित्वस्वरूपका कहनेवाला है वही अन्य अनंत धर्मोंका भी कहनेवाला है इसप्रकार है अस्तित्व नास्तित्व रूप धौका कहनेवाला एक ही शब्द होनेपर शब्दकी अपेक्षा अभेद है। इसप्रकार है यह द्रव्यार्थिक नयकी प्रधानता रहनेपर और पर्यायार्थिक नयके गौण रहनेपर काल आदिके द्वारा क गुणोंकी अभेदव्यवस्था है । अस्तित्व नास्तित्व आदि धाँकी भेदव्यवस्था इसप्रकार है
___जहांपर द्रव्यार्थिक नयकी गौणता और पर्यायार्थिक नयकी प्रधानतारहती है वहाँपर गुणोंकी अभेद18| व्यवस्था नहीं होती किंतु भेदव्यवस्था होती है । जिसतरह-पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा अस्तित्व नास्तित्व
आदि धर्म आपसमें विरुद्ध हैं एक कालमें उनका एकजगह रहना नहीं हो सकता यदि उनका एकजगह ई संभव माना जाय तो जितने गुणोंका वह द्रव्य आश्रय होगा उतने ही प्रकारके भेद उस द्रव्य वा पदार्थ है के हो जायगे क्योंकि प्रतिक्षणमें पदार्थोंका भेद माना है इसलिए पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा कालसे |
अस्तित्व नास्तित्वादिधर्मोंका अभेद नहीं हो सकता। अस्तित्व नास्तित्व आदि समस्त गुणोंका स्वरूप |
-RINPEOAISGARLASS
ISROCESSAGI
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