Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अनबन
अध्याय
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चरा आदि चार भंग होंगे । स्यादस्त्येवाला यहां पर विशिष्ट सामान्य आत्मत्व है इसलिये उसकी अपेक्षा :
|| आत्मत्वरूपसे आत्मा है यह प्रथम भंग हे.आत्मत्वरूप विशिष्ट सामान्यको विशेष मनुष्यत्व, हे, इसलिए | ११९५ जिससमय मनुष्यत्वकी अपेक्षा की जायगी उससमय मनुष्पवरूपसे आत्मा नहीं है इसलिए मनुष्यत्वकी
| अपेक्षा स्यान्नास्त्येवात्मा यह दुसरा भंग है। जिससमय आत्मत्वकी अपेक्षा आत्माकी सचा और मनु काव्यत्त्वकी अपेक्षा आत्माकी असत्ताकी एक साथ विवक्षा की जायगी उससमय स्यादवक्तव्यं यह तीसंग
भंग होगा एवं जिससमय आत्मत्वकी अपेक्षा आत्माकी सत्ताकी और अनात्मत्वकी अपेक्षा आत्माकी | असचाकी क्रमसे विवक्षा की जायगी उससमय स्यादस्ति नास्तिवात्सा यह चतुर्थ भंग होगा ४ि तथा- सामान्य और विशिष्ट सामान्य के प्रतियोगी (विरोधी.) में जहां जिस रूपले अवण होगा वापर भी उसकी अपेक्षा स्यादस्ति इत्यादि भंग हैं। जहां पर 'द्रव्यत्वरूपसे आत्मा है' यह कहता है वहां पर बाद सामान्य पदार्थ द्रव्यत्व है इसलिये द्रव्यत्वरूप सामान्यकी अपेक्षास्यावस्त्येवात्मा यह प्रथम संग हैं। विशिष्ट सामान्यका विरोधी अर्थात् आतत्वका विरोधी अनात्मत्व है इसलिये जहाँपर विशिष्ट सामान्यका विरोधी स्वरूप.अनात्मसको विवक्षा मानी जायगी ससमय उसकी अपेक्षा स्यान्नास्त्येवात्मा' यह दूसरा भग है। जिससमय द्रव्यस्तरूपसे. आत्माकी सचा और अनात्मत्वरूपसे आत्माकी. असत्ताकी एक साथ विवक्षा की जायगी उससमय स्यादवक्तव्य यह तीसरा भंग होगा। एवं जहां पर द्रव्यत्वरूपसे आत्माकी सचा और अनात्मत्वरूपसे आत्माकी असचाली कमसे विवक्षा होगी उससमय, स्यादस्तिनास्तिचात्मा यह चतुर्थ भंग सिद्ध होगा ॥५॥ तथा 11 . 15A
5 F- द्रव्यसामान्य वा गुणसामान्यमें जहां जिस जिस रूपसे वस्तुका होना संभव होगा वहां उस उस
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