Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
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गौरव होता इसलिए लाघवार्थ पहिले जघन्य स्थिति और पीछे उत्कृष्ट स्थिति जो यहां कही गई है है वह ठीक है ॥३०॥ सूत्रकार व्यंतर देवोंकी उत्कृष्टस्थितिका प्रतिपादन करते हैं
परा पल्योपममधिकं ॥ ३६॥ व्यंतरोंकी उत्कृष्ट आयु एक पलासे कुछ अधिक है।
स्थित्यभिसंबंधात् स्त्रीलिंगनिर्देशः ॥१॥ ऊपरके सूत्रोंसे इस सूत्रमें स्थितिकी अनुवृत्ति है। स्थिति शब्द स्त्रीलिंग है इसलिए 'परा' यहां स्रोलिंगका निर्देश किया गया है ॥ ३१॥ अब ज्योतिषी देवोंकी उत्कृष्टस्थितिका सूत्रकार वर्णन करते हैं
ज्योतिष्काणांच॥४०॥ ____ज्योतिष्क देवोंकी उत्कृष्ट आयु एक पल्यसे कुछ अधिक है। सूत्रमें जो च शब्द है उमका अर्थ समुच्चय है इसलिए 'परा पल्यापेममायक' इस समस्त सूत्रका 'ज्योतिष्काणांच' यहांपर समुच्चय है। इसतरह व्यत्तरोंके समान ज्योतिष्क देवोंकी उत्कृष्टस्थिति एक पल्य कुछ अधिककी है यह अर्थ है ॥४०॥ ज्योतिष्क देवोंकी जघन्यस्थिति कितनी है ? सूत्रकार इस बातका प्रदर्शन करते हैंतदष्टभागोऽपरा॥४१॥
१९४२ ज्योतिष्क देवोंकी जघन्य आयु एक पल्यके आठ भागोंमें एक भागप्रमाण है ॥११॥
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