Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय ४
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|| घटके स्वरूपकी प्रक्टता कारण है इमलिए वह घटकी ही पर्याय है। यदि यहांपर यह शंका की जाय कि-
। 'स्यादस्येव जीव:' यहांपर अस्ति शब्दका वाच्य जो अर्थ है उससे जीव शब्दका वाच्य अर्थभिन्न का स्वभाव है कि अभिन्न स्वभाव है ? यदि कहां जायगा कि अस्ति शब्दके वाच्य अर्थसे जीव शब्दको हैवाच्य अर्थ अभिन्न है तो जो सत् शब्दके वाच्य अर्थका स्वरूप है वही जीव शब्दके वाच्य अर्थका भी हूँ
स्वरूप होगा अन्य किसी भी विशेष धर्मका वही समावेश न हो सकेगा इसलिए सत और जीव पदार्थों P कोई विशेष न होगा दोनों एक ही कहे जायगे तथा यह नियम है जो पदार्थ भिन्न भिन्न होते हैं उन्हींका है
आपसमें समानाधिकरण संबंध होता है एवं जिनका आपसमें समानाधिकरण संबंध होता है उन्हींका | विशेषण विशेष्यभाव भी होता है जब जीव और आस्तित्वका वाच्य अर्थ एक ही माना जायगा तब ने | तो उन दोनोंका आपसमें सामानाधिकरण्य संबंध बनेगा और न आपसमें वे विशेषण विशेष्यभाव कहे
जायगे इस रीतिसे जो ऊपर अस्तित्वको विशेषण और जीवको विशेष्य कहा गया है वह कहना मिथ्या | होगा । तथा जिसप्रकार घट और कुट शब्द एक ही अर्थके वाचक हैं इसलिए जहां घटरूप अर्थके जनानेकी आवश्यकता पडती है वहांपर घट कुट दोनों शब्दोंमें किसी एक शब्दका ही प्रयोग किया
जाता है उसीसे अर्थ संपन्न हो जाता है दोनों शब्दोंका प्रयोग नहीं करना पडता। यदि अस्तित्व और है का जीव शब्दोंको एकार्थवांचक मोना जायगा तो 'स्यादस्त्येव जीव:' यहाँपर अस्तित्व और जीव इन दोनों
शब्दोंमें एक ही शब्दका प्रयोग करना होगा। तथा और यह बात है31 । अस्तित्व के विषय समस्त द्रव्य और पर्याय हैं अर्थात समस्त द्रव्य और पर्याय अस्तित्वस्वरूप माने B
गये हैं उस अस्तित्वसे जीव.पदार्थ अभिन्न है इसलिए-जिसप्रकार आस्तित्वका समस्त द्व्य और पर्यायोंके
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