Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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त्तरा भाषा
Mal कथंचित् अभेद और कथंचित् भेद है क्योंकि पर्यायार्थिंकनयकी अपेक्षा होना और जीना ये दोनों
अध्यायः MR पर्याय परस्पर भिन्न भिन्न हैं। अस्तित्व पर्यायके उल्लेखसे जीवका ग्रहण नहीं होता और जीव पर्यायके |
उल्लेखसे अस्तित्वका ग्रहण नहीं होता इसलिये आस्तत्व और जीवका आपसमें कथंचित् भेद है। तकार ११७१
द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा होना और जीना दोनों पर्यायें द्रव्यस्वरूप हैं। दोनोंके द्रव्यस्वरूप होने अस्तित्वके ग्रहण करनेसे जीवका ग्रहण और जीवके ग्रहण करनेसे अस्तित्वका ग्रहण होता है इसलिये अस्तित्व और जीव आपसमें कथंचित् अभेदस्वरूप हैं। इसरीतिसे स्यादस्ति और स्थानास्ति ये दोनों भंग निर्वाधरूपसे सिद्ध है। तथा अर्थ अभिधान और प्रत्यय अर्थात् पदार्थ शब्द और ज्ञान इन तीनोंकी | प्रसिद्धि स्यादस्ति और स्थानास्ति इन दोनोंके आधीन है इसलिये पदार्थ आदिकी प्रसिद्धि होनेसे स्यादस्ति और स्थानास्ति इन दोनों भंगोंका होना भी अत्यावश्यक है । खलासा इसप्रकार है
जीव पदार्थ, जीव संज्ञा और जीव ज्ञान ये तीनों बातें लोकमें विचारसिद्ध हैं ऐसा कोई मानता है, उसका यह कहना भी है कि जो पुरुष वर्णाश्रम धर्मके माननेवाले हैं वे जीवका अस्तित्व मानकर ही |
इस लोक परलोकसंबंधी क्रियाओंमें प्रवृत्त होते हैं इसलिए जीव पदार्थ है ही। इस सिद्धांतका प्रतिवाद ६ स्वरूप दुसरेका कहना है कि
___जीवपदार्थ, जीवशब्द और जीवज्ञान ये तीनों ही पदार्थ संसारमें नहीं हैं उनमें जीवपदार्थ उपलब्ध न होता नहीं इसलिए वह तो है ही नहीं किंतु उस रूपसे परिणमित होनेवाला विज्ञान पदार्थ ही उसकी II स्वप्नके समान कल्पना करता है अर्थात् जिसप्रकार स्वप्नमें अनेक पदार्थ दीख पडते हैं परंतु आंख ||
खुलते ही उनमेंसे एकका भी पता नहीं चलता इसलिए वे सब मिथ्या माने जाते हैं उसीप्रकार जीव भी
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